आखिर क्यों आत्महत्या करते हैं लोग?
बेंगलूरु (प्रदीप शुक्ल 'स्वतंत्र')। महज तीन दिन पहले बेंगलुरु के चौदेश्वरीनगर में रहने वाली तीन सहेलियां घर से निकलीं और शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक नहर के पास पहुंचीं और आपस में तीनों ने एक-दूसरे को बांध लिया। एक साथ तीनों नहर में कूद पड़ीं। कुछ किलोमीटर जाकर उनके शव पुलिस को मिले। इसके बाद कल ही शहर के मडीवाला इलाके में कॉलेज से निकाले जाने पर एक छात्र ने सुसाइड किया।
अगर बड़े संस्थानों की बात करें तो देश भर में आईआईटी समेत कई अन्य इंजीनियरिंग व मेडिकल कॉलेजों में छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले आना अब नई बात नहीं रह गई है। वहीं देश में हर साल 100 से ज्यादा किसान मौत को गले लगाते रहते हैं। सरकारी आंकड़ा तो यहां तक कहता है कि केवल बुंदेलखंड में पिछले 10 साल में 2945 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सच पूछिए तो कुछ कर गुरजने की चाह से ज्यादा अपने आप को मिटा देने की की राह युवाओं को जयादा भा रही है।
सोचने वाली बात यह है कि आखिर इंसान यह कदम क्यों और कब उठाने पर मजबूर होता है। आत्महत्या करने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे घर में आर्थिक परेशानी, दोस्तो के द्वारा खराब व्यवहार, प्यार में असफल या प्यार न मिलना, माता-पिता से नाराज होकर, परीक्षा में फेल होना, बेरोजगारी, कर्ज का भार। ये सारी बातें हमारे समाज में नई तो नहीं है, ऐसी परेशानी पहले भी लोगो को देखने को मिलती थीं, लेकिन अब ऐसा क्या नया है, जो युवाओं को कमजोर बना रहा है। ऐसा क्या हो जाता है कि उनके अंदर जीने की चाहत खत्म हो जाती है।
विशेषज्ञों की मानें तो समाज की अधिकतर परेशानीयों का जन्म हमारे घरों में ही होता है। खुद को मिटा देने की घटनाओं में ज्यादातर बच्चे, युवा और नौजवान ही शामिल हैं। बचपन से युवावस्था की दहलीज पर खड़े युवा कहीं न कहीं अकेलापन का शिकार हो रहे हैं। इससे हमारे बच्चे अपने आप को अकेला समझ कर मौत का दामन थाम लेते हैं। लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक डा. कृष्ण दत्त मिश्रा का कहना है कि वही युवा आत्महत्या के प्रयास जल्दी करते हैं, जिन्हें बचपन से अकेलापन मिला होता है। यानी एकल परिवारों के बच्चों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। इसके अलावा यदि आप बच्चों को अच्छे नंबरों, करियर, नौकरी, उनकी आदतों, आदि के लिए लगातार डांटते फटकारते रहते हैं, तो वे खुद की दुनिया को सीमित समझने लगते हैं और जब उनका मानसिक दर्द असहनीय हो जाता है तब वो यह कदम उठाते हैं। लिहाजा आज बच्चों से पहले माता-पिता की नियमित काउंसिलिंग की जरूरत है।
डा. कृष्ण दत्त के मुताबिक आम तौर पर आत्महत्या करने वाले लोग अगर किसी हिंसा का शिकार हुए होते हैं, तो हिंसा के वक्त खुद को मारने की धमकी बार-बार देते हैं, तब लोग उसकी बात को गहराई से नहीं लेते हैं। बल्कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो बार-बार ताने मिलने पर खुद को खत्म करने की योजना काफी पहले से बनाने लगते हैं। लिहाजा परिवार के सदस्यों को इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिये, यदि कुछ भी असामान्य होता देखें, तो पीडि़त से बात जरूर करें।
हमारे जीवन में दिशा देने का काम माता-पिता, शिक्षक तथा कुछ आदर्श पुरूषों के द्वारा किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि सबसे ज्यादा भ्रमित स्थिति में वही है। आधुनिकतम की दौड़ में माता-पिता के पास इतना समय नहीं है, कि अपने बच्चों के पास दो पल बैठकर उनके अकेलेपन को बांट सकें। इस अकेलेपन के साथ-साथ सफलता प्राप्त करने का मानसिक दबाव भी उनको आत्महत्या की तरफ ढ़केल रहा है। खास कर जिन परिवारों में पहले भी आत्महत्या हुई हैं, उनके बच्चों द्वारा यह रास्ता अपनाने की आशंका ज्यादा होती है। हाल ही में हुए एक रिसर्च में सामने आया कि जिनमें आत्महत्या के जीन होते हैं, उनमें बायोकेमिकल परिवर्तन हो जाते हैं। इससे बच्चे या व्यक्ति का मानसिक संतुलन अव्यवस्थित हो जाता है। यह भी पता चला है कि आत्महत्या करने से पहले सोसाइडल हार्मोनस बढ़ जाते हैं।
अगर बड़े संस्थानों की बात करें तो देश भर में आईआईटी समेत कई अन्य इंजीनियरिंग व मेडिकल कॉलेजों में छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले आना अब नई बात नहीं रह गई है। वहीं देश में हर साल 100 से ज्यादा किसान मौत को गले लगाते रहते हैं। सरकारी आंकड़ा तो यहां तक कहता है कि केवल बुंदेलखंड में पिछले 10 साल में 2945 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सच पूछिए तो कुछ कर गुरजने की चाह से ज्यादा अपने आप को मिटा देने की की राह युवाओं को जयादा भा रही है।
सोचने वाली बात यह है कि आखिर इंसान यह कदम क्यों और कब उठाने पर मजबूर होता है। आत्महत्या करने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे घर में आर्थिक परेशानी, दोस्तो के द्वारा खराब व्यवहार, प्यार में असफल या प्यार न मिलना, माता-पिता से नाराज होकर, परीक्षा में फेल होना, बेरोजगारी, कर्ज का भार। ये सारी बातें हमारे समाज में नई तो नहीं है, ऐसी परेशानी पहले भी लोगो को देखने को मिलती थीं, लेकिन अब ऐसा क्या नया है, जो युवाओं को कमजोर बना रहा है। ऐसा क्या हो जाता है कि उनके अंदर जीने की चाहत खत्म हो जाती है।
विशेषज्ञों की मानें तो समाज की अधिकतर परेशानीयों का जन्म हमारे घरों में ही होता है। खुद को मिटा देने की घटनाओं में ज्यादातर बच्चे, युवा और नौजवान ही शामिल हैं। बचपन से युवावस्था की दहलीज पर खड़े युवा कहीं न कहीं अकेलापन का शिकार हो रहे हैं। इससे हमारे बच्चे अपने आप को अकेला समझ कर मौत का दामन थाम लेते हैं। लखनऊ के छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के मनोचिकित्सक डा. कृष्ण दत्त मिश्रा का कहना है कि वही युवा आत्महत्या के प्रयास जल्दी करते हैं, जिन्हें बचपन से अकेलापन मिला होता है। यानी एकल परिवारों के बच्चों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। इसके अलावा यदि आप बच्चों को अच्छे नंबरों, करियर, नौकरी, उनकी आदतों, आदि के लिए लगातार डांटते फटकारते रहते हैं, तो वे खुद की दुनिया को सीमित समझने लगते हैं और जब उनका मानसिक दर्द असहनीय हो जाता है तब वो यह कदम उठाते हैं। लिहाजा आज बच्चों से पहले माता-पिता की नियमित काउंसिलिंग की जरूरत है।
डा. कृष्ण दत्त के मुताबिक आम तौर पर आत्महत्या करने वाले लोग अगर किसी हिंसा का शिकार हुए होते हैं, तो हिंसा के वक्त खुद को मारने की धमकी बार-बार देते हैं, तब लोग उसकी बात को गहराई से नहीं लेते हैं। बल्कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो बार-बार ताने मिलने पर खुद को खत्म करने की योजना काफी पहले से बनाने लगते हैं। लिहाजा परिवार के सदस्यों को इन बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिये, यदि कुछ भी असामान्य होता देखें, तो पीडि़त से बात जरूर करें।
हमारे जीवन में दिशा देने का काम माता-पिता, शिक्षक तथा कुछ आदर्श पुरूषों के द्वारा किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि सबसे ज्यादा भ्रमित स्थिति में वही है। आधुनिकतम की दौड़ में माता-पिता के पास इतना समय नहीं है, कि अपने बच्चों के पास दो पल बैठकर उनके अकेलेपन को बांट सकें। इस अकेलेपन के साथ-साथ सफलता प्राप्त करने का मानसिक दबाव भी उनको आत्महत्या की तरफ ढ़केल रहा है। खास कर जिन परिवारों में पहले भी आत्महत्या हुई हैं, उनके बच्चों द्वारा यह रास्ता अपनाने की आशंका ज्यादा होती है। हाल ही में हुए एक रिसर्च में सामने आया कि जिनमें आत्महत्या के जीन होते हैं, उनमें बायोकेमिकल परिवर्तन हो जाते हैं। इससे बच्चे या व्यक्ति का मानसिक संतुलन अव्यवस्थित हो जाता है। यह भी पता चला है कि आत्महत्या करने से पहले सोसाइडल हार्मोनस बढ़ जाते हैं।
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The suicide cases have been drastically increased in India, specially in Bangalore. Here the question is why people get into this extreme step of the life?
this an article is very useful and best. Hindi Travel Guides
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