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मंगलवार, 28 मार्च 2017

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सोमवार, 27 मार्च 2017

Rajasthani

Rajasthani

Songs


Atenolol

Atenolol 25mg,50 mg

एटिनोलोल को उच्च रक्तचाप और
एनजाइना का इलाज करने के लिए और
मौत को रोकने के लिए स्थिर हृदय रोग
के रोगियों के इलाज के लिए प्रयोग किया
जाता है।
यह क्यों निर्धारित किया गया है:
एटेनॉलोल ब्लॉक बीटा
-1 रिसेप्टर्स, जो हृदय पर मौजूद
हैं। यह तंत्रिका रसायन
एड्रेनालाईन और दिल पर
noradrenaline
की कार्रवाई को रोकता
है। नतीजतन,
हृदय
धीमी
गति से और कम शक्ति के साथ धड़कता
है, और इस तरह कम रक्त को
रक्त वाहिकाओं में पंप करता है।
एनायोलोल की यह
कार्रवाई उच्च रक्तचाप वाले
मरीजों में रक्तचाप को
कम करती है। चूंकि
एटेनोलोल के साथ दिल
धीरे-
धीरे और कम बल के
साथ इलाज किया जाता है, इसलिए
यह कम ऊर्जा का उपयोग करता
है जिससे इस प्रकार एनजाइना में
दर्द से राहत मिलती
है और दिल का दौरा पड़ने का खतरा
भी कम हो जाता
है।
जब इसे नहीं लिया
जाता है (कंट्राइंड):
Atenolol बिल्कुल निम्नलिखित शर्तों
के साथ रोगियों में contraindicated
है:
• नैदानिक ​​अवसाद
• दवा के लिए ज्ञात
एलर्जी
• दूसरा या तीसरा
डिग्री दिल ब्लॉक
• लगातार कम हृदय गति
(ब्रेडीकार्डिया)
• दिल की विफलता के
कारण खराब रक्त परिसंचरण
• फेरोमोकोसाइटोमा नामक अधिवृक्क ग्रंथि
के ट्यूमर
• गर्भावस्था
• स्तनपान कराने वाली
मां
गर्भावस्था
श्रेणी: एबीस
श्रेणी
डी:
प्रतिकूल प्रतिक्रिया डेटा के आधार पर
भ्रूण के जोखिम का एक प्रमाण है,
लेकिन संभावित लाभ जोखिमों के बावजूद
गर्भवती महिलाओं
में दवा का उपयोग करने
की अनुमति दे सकते
हैं।
खुराक और इसे लेने के लिए (संकेत):
चिकित्सा की स्थिति के
अनुसार दवा का खुराक अलग होता
है।
तीव्र दिल का दौरा पड़ने
वाले रोगी में:
गंभीर दिल के दौरे के
लिए अंतःस्रावी
एटेनोलोल के बाद मरीज
को स्थिर स्थिति में आने के बाद मौखिक
चिकित्सा एनेनीलोल के
साथ शुरू होनी
चाहिए। अंतिम अंतराल खुराक के 10
मिनट के बाद पहली
मौखिक खुराक (50
मिलीग्राम)
दी
जानी चाहिए। एक
और 50 मिलीग्राम
खुराक 12 घंटे के बाद
दी
जानी चाहिए। फिर दिन
में एक बार 100
मिलीग्राम दिन में एक
बार या दिन में दो बार 6 से 9 दिन के लिए
या अस्पताल से छुट्टी
के लिए दो बार दिया जाना चाहिए।
• उच्च रक्तचाप या एनजाइना के लिए:
50 मिलीग्राम एक बार
दैनिक एक-दो सप्ताह के बाद रोज़ाना
खुराक 100 मिलीग्राम
तक बढ़ाया जा सकता है।
एक खुराक मिस? :
• जैसे ही आप याद
करते हैं, दवा ले लो
• दो खुराक एक साथ न लें।
• अगर यह अगले खुराक तक 8 घंटे
से कम है, तो मिस्ड मात्रा को छोड़ दें।
यह कैसे लिया जाना चाहिए:
• पानी के साथ
गोली ले लो
• भोजन के बाद दवा लेने से सलाह
दी
जाती है कि पेट खराब
होने की संभावना कम
हो। हालांकि, दवा
खाली पेट ले जा सकते
हैं
• अपने निर्धारित चिकित्सक से सलाह
के बिना दवा लेने से
कभी
भी रोक
नहीं सकते
अप्रभावी समाप्ति
गंभीर स्वास्थ्य
समस्याओं का कारण हो सकता है
चेतावनी और सावधानियां
:
• किसी
सर्जरी या दंत
प्रक्रिया से पहले अपने चिकित्सक
से परामर्श करें इस तरह के उपचार
से पहले एटेनोलोल को रोकना पड़
सकता है।
• दवा निम्न रक्त शर्करा के स्तर के
लक्षण अवरुद्ध कर
सकती है। इस दवा
का उपयोग करते समय मधुमेह रोगियों
को अतिरिक्त ध्यान रखना चाहिए।
• एटेनॉलॉल कई दवाओं के साथ संपर्क
करता है। सुनिश्चित करें कि आपके
चिकित्सक को उन
सभी दवाओं को पता
है जो आप एनेनिॉल के साथ इलाज शुरू
करने से पहले ले रहे हैं।
• रोगी
एलर्जी प्रतिक्रिया
विकसित कर सकता है
दुष्प्रभाव :
• हृदय-
धीमी
गति से हृदय गति, दिल
की विफलता, कम
रक्तचाप
• केंद्रीय तंत्रिका तंत्र
- सिरदर्द, थकान, चक्कर आना,
मतिभ्रम, भ्रम और
नींद
की रुकावटें।
जठरांत्र - डायरिया और
मतली
• श्वसन - श्वास की
चक्कर आना और शॉर्ट।
• दूसरों: यौन ड्राइव
की
कमी, नपुंसकता, और
स्तंभन दोष।
अन्य सावधानियां:
अगर रोगी इन शर्तों में
से कोई भी हो तो
अत्यधिक सावधानी के
साथ दवा का प्रयोग किया जाना चाहिए:
• उंगलियों में कभी-
कभी स्तब्ध हो जाना
और झुनझुनी
• दमा।
• क्रोनिक अवरोधक
फुफ्फुसीय रोग
(सीओप
• मधुमेह, क्योंकि यह निम्न रक्त
शर्करा के स्तर के प्रभावों को ढंक कर
सकता है।
हाइपरथायरॉडीजम,
या उच्च थायराइड हार्मोन का स्तर
• गुर्दा की समस्याएं,
क्योंकि मूत्र में शरीर
से दवा समाप्त हो
जाती है
• यकृत समारोह समस्याएं
• स्किन हालत जिसे छालरोग कहा
जाता है
मस्तिष्किया ग्रेविस के रूप में जाना जाता
मांसल कमजोरी
नियमित रक्तचाप और रक्त शर्करा
की
निगरानी
की सिफारिश
की
जाती है
मरीन लेने पर
एटेनोलोल और उपरोक्त शर्तों में से कोई
भी।
दवाओं का पारस्परिक प्रभाव :
एटेनोलोल से बचा जाना चाहिए:
• additive प्रभावों के कारण अन्य
बीटा ब्लॉकर्स
• अन्य दवाएं जो दिल को
धीमा कर
सकती हैं जैसे
वरापामिल, डिजीटलिस,
एमिएडेरोन और डिलटिज्म
• ब्रोन्की पर
विपरीत प्रभाव के
कारण अस्थमा के उपचार में प्रयुक्त
ड्रग्स
एटिनोलोल के बाद
एंटीबायट
दवाएं
हाइपोग्लाइसीमिया के
संकेतों को रोक सकती
हैं।
• अल्फ़ा रिसेप्टर्स पर काम करने वाले
ड्रग एफ़ाइड्रिन जैसे अल्फा एगोनिस्ट
के साथ, यह रक्तचाप में अत्यधिक
वृद्धि कर सकता है, जबकि प्रफोसिस
जैसे अल्फा ब्लॉकर्स के साथ, इससे
रक्तचाप में अधिक गिरावट आ
सकती है।
• एनआईएसएड्स जैसे आईबुप्रोफेन
और नेप्रोक्सेन, जो रक्तचाप पर
एनेनिओल के प्रभाव को अवरुद्ध कर
सकते हैं।
• हृदय और रक्तचाप पर
additive प्रभाव के कारण अल्वाइमर
की
बीमारी
जैसे rivastigmine में
एंटीकोलेनेस्टेरेज़
दवाओं का उपयोग किया जाता है।
• ड्रग्स जो ब्लड प्रेशर को कम करते
हैं और क्लोथैलेजाइड जैसे पोटेशियम
स्तर को बढ़ाते हैं।
• अन्य दवाएं जो रक्तचाप को कम कर
सकती हैं जैसे कि
एंटीहाइपरटेंशियस
दवाएं, एल्डेस्लेुकिन और बार्बिटुरेट्स।
जमा करने की स्थिति :
सीधे धूप के दूर से
एक शांत, शुष्क जगह में दवा को
स्टोर करें बच्चों की
पहुँच से दूर रक्खें।
अनुसूची: एच
प्रिस्क्रिप्शन दवाएं - एक
पंजीकृत मेडिकल
प्रैक्टिशनर के नुस्खा के तहत
ही बेचा जा सकता
है।

Sammohan



               सम्मोहन

 सम्मोहन एकविद्या है। जिसे जागृत करना सामान्यत: आज के मानव के अति
दुष्कर कार्य है। सम्मोहन विद्या का इतिहास आज या सौ-दो
सौ साल पुराना नहीं बल्कि सम्मोहन प्राचीन काल
से चला रहा है। श्रीराम और श्रीकृष्ण में
सम्मोहन की विद्या जन्म से ही थी। वे
जिसे देख लेते या कोई उन्हें देख लेता वह बस उनकी
माया में खो जाता था। यहां हम बात करेंगे श्रीकृष्ण के
सम्मोहन की। श्रीकृष्ण का एक नाम मोहन
भी है। मोहन अर्थात सभी को मोहने वाला।
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व और सुंदरता सभी का
मन मोह लिया करती है। जिन श्रीकृष्ण
की प्रतिमाएं इतनी सुंदर है वे खुद कितने सुंदर
होंगे। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में सम्मोहन
की कई लीलाएं की हैं। उनकी मधुर
मुस्कान और सुंदर रूप को देखकर गोकुल की गोपियां
अपने आप को रोक नहीं पाती थी और
उनके मोहवश सब कुछ भुलकर बस उनका संग पाने को
लालायित हो जाती थी। श्रीकृष्ण ने माता
यशोदा को भी अपने मुंह में पुरा ब्रह्मांड दिखाकर उस
पल को उनकी याददाश्त से भुला दिया बस यही
है सम्मोहन। श्रीकृष्ण जिसे जो दिखाना, समझाना और
सुनाना चाहते हो वह इसी सम्मोहन के वश बस वैसा
ही करता है जैसा श्रीकृष्ण चाहते हैं।
ऐसी कई घटनाएं उनके जीवन से जुड़ी हैं
जिनमें श्रीकृष्ण के सम्मोहन की झलक है।
सम्मोहन कोई जादू नहीं है .....
मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करके
या एकाग्र करके उस बढ़ी हुई शक्ति से किसी
को प्रभावित करना ही सम्मोहन विद्या है। सम्मोहन
विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ
विद्या है। इसकी जड़ें सुदूर गहराईयों तक स्थित हैं।
भारत वासियों का जीवन अध्यात्म प्रधान रहा है और
भारत वासियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दर्शन
और अध्यात्म को सर्वाधिक महत्व दिया है। इसीलिए
सम्मोहन विद्या को भी प्राचीन समय से 'प्राण
विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता है।
भारतीय दर्शन और भारतीय अध्यात्म, योग और
उसकी शक्तियों से जुड़ा हुआ है। योग शब्द का अर्थ
ही 'जुडऩा' है, यदि इस शब्द को आध्यात्मिक अर्थ में
लेते हैं तो इसका मतलब आत्मा का परमात्मा से मिलन और
दोनों का एकाकार हो जाना ही है। भक्त का भगवान से,
मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, तथा पिण्ड का
ब्रह्माण्ड से मिलन ही योग कहा गया है।
हकीकत में देखा जाए तो यौगिक क्रियाओं का उद्देश्य
मन को पूर्ण रूप से एकाग्र करके प्रभु यानि ईश्वर में
समर्पित कर देना है। और इस समर्पण से जो शक्ति का
अंश प्राप्त होता है, उसी को सम्मोहन शक्ति कहते
हैं ।
अगर करना हो सम्मोहन तो..
मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करके
या एकाग्र करके उस बढ़ी हुई शक्ति से किसी
को प्रभावित करना ही सम्मोहन विद्या है। सम्मोहन
विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ
विद्या है। इसकी जड़ें सुदूर गहराईयों तक स्थित हैं।
भारत वासियों का जीवन अध्यात्म प्रधान रहा है और
भारत वासियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दर्शन
और अध्यात्म को सर्वाधिक महत्व दिया है। इसीलिए
सम्मोहन विद्या को भी प्राचीन समय से 'प्राण
विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता है।
भारतीय दर्शन और भारतीय अध्यात्म, योग और
उसकी शक्तियों से जुड़ा हुआ है। योग शब्द का अर्थ
ही 'जुडऩा' है, यदि इस शब्द को आध्यात्मिक अर्थ में
लेते हैं तो इसका मतलब आत्मा का परमात्मा से मिलन और
दोनों का एकाकार हो जाना ही है। भक्त का भगवान से,
मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, तथा पिण्ड का
ब्रह्माण्ड से मिलन ही योग कहा गया है।
हकीकत में देखा जाए तो यौगिक क्रियाओं का उद्देश्य
मन को पूर्ण रूप से एकाग्र करके प्रभु यानि ईश्वर में
समर्पित कर देना है। और इस समर्पण से जो शक्ति का
अंश प्राप्त होता है, उसी को सम्मोहन शक्ति कहते
हैं ।
अगर करना हो सम्मोहन तो..
सम्मोहन, वशीकरण, जादू-टोना ये ऐसे शब्द हैं जो
हर व्यक्ति को बरबस ही अपनी ओर
खींच लेते हैं। इन शब्दों का जादू ही ऐसा है कि
कोई भी इनकी ओर आसानी से आकर्षित
हो जाता है। लेकिन ये विद्याएं ऐसी हैं जिन्हें पाना
हर किसी के बस की बात नहीं
होती। इसके लिए खुद को पूरी तरह तैयार करना
होता है। आइए जानते हैं कि सम्मोहन सीखने के
लिए हमें क्या तैयारी करनी होगी।
इन विद्याओं को पराविद्या भी कहते हैं, यानी ये
हमें दूसरी दुनिया से जोड़ती हैं।
1. इसके लिए सबसे पहले हमें मानसिक रूप से खुद को
तैयार करना होगा। सम्मोहन, वशीकरण, जादू
जैसी विद्याएं बिना मानसिक रूप से तैयार हुए नहीं
मिल सकती।
2. इसके लिए दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है खुद
को एकाग्र रखना। अगर आपका मन बार-बार भटकता है तो
फिर आप इन विद्याओं को नहीं पा सकते। इसके लिए
आपको सबसे पहले ध्यान करने का अभ्यास शुरू करना होगा।
3. सत्य, इन विद्याओं के लिए मन को साधना होगा और उसका
सबसे पहला कदम है सत्य बोलना। आपको हर समय
सत्य बोलना शुरू करना होगा और झूठ व बहानेबाजी
की आदत छोड़नी होगी।
4. समय की पाबंदी, यह भी इन विद्याओं
के लिए आवश्यक है।
5. पवित्रता, इन विद्याओं के लिए यह भी आवश्यक
है कि आप मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से पवित्र
रहें। अगर इन विद्याओं का कोई गलत इस्तेमाल करने के लिए
आप सीख रहे हैं तो यह मिलना संभव नहीं
है।
6. समय, ऐसी विद्याओं को अर्जित करने के लिए समय
की आवश्यकता होती है, आप में इसके लिए
सब्र होना चाहिए।
7. विश्वास, ऐसी विद्याएं भगवान और खुद में विश्वास
रखने से ही मिलती हैं, अगर आपमें विश्वास
की कमी हैं तो यह नहीं मिल
सकतीं।
फिर हर चीज खींची चली
आएगी आपकी ओर..!
आप अक्सर सोचते होंगे कि कोई चीज बस देखने भर
से आपकी आरे खींची चली आए तो
कैसा हो? लेकिन फिर इसे कपोल कल्पना मानकर भूल
भी जाते होंगे। क्या आप ये जानते हैं कि यह संभव
भी है। इस विद्या को सिद्ध किया जा सकता है और
वह भी बहुत अच्छी तरह से। इसके बाद
आप जिस चीज को देखेंगे, वह आप की ओर
चली आएगी, चाहे इंसान हो या फिर कोई पत्थर।
वास्तव में इसे सम्मोहन, वशीकरण और कई नामों से
पुकारा जाता है। सम्मोहन, वशीकरण का ही
एक रूप है त्राटक साधना। इसके जरिए हम अपनी
आंखों और मस्तिष्क की शक्तियों को जागृत करके
उन्हें इतना प्रभावशाली कर सकते हैं कि मात्र सोचने
और देखने भर से ही कोई भी चीज
हमारे पास आ जाएगी। त्राटक साधना करने के लिए
आपको खुद को कुछ दिनों के लिए नियमों में बांधना होगा। त्राटक
साधना यानी किसी भी वस्तु को एकटक
देखना। यह साधना आप उगते सूर्य, मोमबत्ती,
दीया, किसी यंत्र, दीवार या कागज पर बने
बिंदू आदि में से किसी को देखकर ही कर सकते
हैं। त्राटक साधना में रखें ये सावधानियां - इस साधना के समय
आपके आसपास शांति हो। इस साधना का सबसे अच्छा समय
है आधी रात या फिर ब्रह्म मुहूर्त यानी
सुबह 3 से 5 के बीच। - रात को यदि त्राटक करें तो
सबसे अच्छा साधन है मोमबत्ती। मोमबत्ती को
जलाकर उसे ऐसे रखें कि वह आपकी आंखों के सामने
बराबरी पर हो। - मोमबत्ती को कम से कम चार
फीट की दूरी पर रखें। - पहले
तीन-चार दिन तीन से पांच मिनट तक एकटक
मोमबत्ती की लौ को देखें। इस दौरान
आपकी आंखें नहीं झपकना चाहिए। -
धीरे-धीरे समय सीमा बढ़ाएं, आप पाएंगे थोड़े
ही दिनों में आपकी आंखों की चमक बढ़
गई है और इसमें आकर्षण भी पैदा होने लगा है।
ऐसे करें बिना मंत्र वशीकरण...........
हर व्यक्ति के शरीर में दोनों आइब्रोज के मध्य का
स्थान तीसरी आंख या आज्ञा चक्र कहा जाता
है। हिन्दू धर्म के अनुसार इसीलिए दोनों आइब्रोज के
मध्य ही तिलक किया जाता है। उसका कारण भी
यही होता है ताकि यह नेत्र जागृत हो सके। जब
कोई गुरु अपने शिष्य को दीक्षा देता है तो भी
वह इसी तीसरे नेत्र पर अपना अंगूठा रखता
है।
ऐसा माना जाता है कि इससे प्रकृति में उपस्थित दिव्य शक्तियां
या अन्य किसी भी प्रकार की सकारात्मक
ऊर्जाएं का किसी व्यक्ति में प्रवेश हो जाए
इसीलिए सकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवेश का द्वार खुल
जाता है। एक सामान्य अभ्यास से कोई भी अपने
तीसरे नेत्र को जागृत कर सकते हैं और किसी
भी व्यक्ति से किसी काम को करने को मन
ही मन कहेंगे तो आप देखेंगे की थोड़े दिनों बाद
वह व्यक्ति आपका काम करने को बगैर कहे ही
तैयार हो जाएगा।एक सामान्य अभ्यास आप भी यह
कर सकते है।- इसके लिए सुबह जल्दी उठकर
शोरगुल ना हो ऐसी जगह पर सीधे बैठकर
ध्यान दोनों आइब्रोज के मध्य अपना ध्यान लगाएं ।-
किसी दूर बैठे व्यक्ति का मन मे चितंन करें या दूर तक
की छोटी छोटी अवाजों को सुनने की
कोशिश करें।- यह अभ्यास रोज नियमित रूप से चालीस
दिन तक करे। चालीस दिन पूर्ण होते ही आपको
इस तीसरे नेत्र की शक्ति का धीरे-
धीरे आपको आभास होने लगेगा।- इस दौरान आपको
जिस व्यक्ति के संबंध में आप मन ही मन सोच रहे
हैं उसके साथ घटने वाली किसी घटना का आभास
आपको हो सकता है।इसके बाद आप देखेंगे की थोड़े
दिन में वह व्यक्ति जिसके बारे में आप सोचेंगे वह बिना कहे
ही आपका काम करने को तैयार हो जाएगा।
वशीकरण का सबसे आसान तरीका
तो वशीकरण के कई तरीके प्रचलित हैं। जिनमें
से कुछ तो सार्वजनिक हैं तथा कुछ अत्यंत गोपनीय
किस्म के होते हैं। यंत्र, तंत्र और मंत्र के क्षेत्र में
ही वशीकरण के कई अचूक और १००
प्रतिशत प्रमाणिक साधन या उपाय उपलब्ध हैं। किन्तु हर
प्रयोग में किसी न किसी विशेष विधि एवं नियम-
कायदों का पालन करना पड़ता ही है। इसीलिये,
आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान
ऐसे तरीके या उपाय चाहता है जो कम से कम समय में
सम्पन्न हो सकें। आजकल हर इंसान शार्टकट के जुगाड़ में
लगा रहता है।
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है
और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात
को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि
किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने का
सरल अनुभवी एवं अचूक तरीका या उपाय दिया जा
रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर उपाय इस प्रकार
है-- जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना
चाहते हैं, उसका एक चित्र जो कि लगभग पुस्तक के
आकार का तथा स्पष्ट छवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र
को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठे,
तो उस चित्र की छवि आपकी आंखों के सामने
ही रहे। ५ मिनिट तक प्राणायाम करने के पश्चात उस
चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर
उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात
कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास
जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह
प्रयोग सूर्योदय से पूर्व होना होता है।
यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल
रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से
व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर
रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग
के स्पष्ट प्रभाव दिखने लगते हैं।

भय

भय



भय को न मारा जा सकता है न जीता जा सकता है,
केवल समझा जा सकता है और केवल समझ ही रूपांतरण
लाती है, बाकी कुछ नहीं। अगर तुम अपने भय को जीतने
की कोशिश करोगे, तो यह दबा रहेगा, तुम्हारे भीतर गहरे
में चला जाएगा। उससे कुछ सुलझेगा नहीं, बल्कि चीजें
और उलझ जाएँगी।
जब भय उठे तो तुम उसे दबा सकते हो- भय को जीतने
का यही अर्थ है। भय को तुम दबा सकते हो; इतने गहरे
में दबा सकते हो कि तुम्हारी चेतना से वह बिलकुल गायब
हो जाए। तब तुम्हें कभी उसका पता भी न चलेगा,
लेकिन वह बेसमेंट में पड़ा रहेगा और अपना काम जारी
रखेगा। वह तब भी तुम पर हावी होगा, तुम पर कब्जा
करेगा, लेकिन ऐसे परोक्ष ढंग से कब्जा करेगा कि तुम्हें
उसका पता भी न चले। लेकिन तब खतरा और भी गहरा
हो जाएगा। अब तुम उसे समझ भी न पाओगे।
तो भय को जीतना नहीं है। न ही उसे मारना है। भय को
तुम मार नहीं सकते, क्योंकि उसमें एक प्रकार की ऊर्जा
होती है और कोई भी ऊर्जा कभी नष्ट नहीं की जा
सकती। तुमने कभी देखा भय के समय तुममें एकदम से
बड़ी ऊर्जा आ जाती है? ठीक जैसे क्रोध के समय
ऊर्जा आ जाती है; वे दोनों एक ही ऊर्जा के दो आयाम
हैं। क्रोध आक्रामक है और भय अनाक्रमक है। भय है
क्रोध की गिनेटिव अवस्था और क्रोध है भय की
पॉजिटिव अवस्था।
जब तुम क्रोध में होते हो तो तुममें कितनी ताकत आ
जाती है, ऊर्जा भर जाती है! जब तुम क्रोध में होते हो
तो एक बड़ी चट्टान भी उठाकर फेंक सकते हो; आमतौर
पर उतनी बड़ी चट्टान तो तुम हिला भी नहीं सकते।
क्रोध के समय तुम तीन-चार गुना ज्यादा शक्तिशाली हो
जाते हो। उस समय तुम ऐसी कई चीजें कर सकते हो, जो
क्रोध के बिना संभव ही नहीं है।
और भय के समय तुम इतना तेज भाग सकते हो कि
ओलिंपिक खिलाड़ी भी ईर्षा करने लगे। भय से ऊर्जा
पैदा होती है; भय ऊर्जा ही है, और ऊर्जा को कभी
नष्ट नहीं किया जा सकता। अस्तित्व से ऊर्जा की एक
चुटकी भी नष्ट नहीं की जा सकती। इस बात को हमेशा
याद रखो, वरना तुम कुछ गलत कर बैठोगे।
तुम किसी भी चीज को नष्ट नहीं कर सकते, केवल
उसका रूप बदल सकते हो। छोटे से कंकड़ को भी तुम
नष्ट नहीं कर सकते। रेत का एक छोटा-सा कण भी नष्ट
नहीं किया जा सकता। वह केवल अपना रूप बदल लेगा।
पानी की एक बूँद को भी तुम नष्ट नहीं कर सकते। हो
सकता है तुम उसे बर्फ बना दो या भाप बना दो, लेकिन
वह मौजूद रहेगी। कहीं न कहीं वह रहेगी, इस अस्तित्व
से बाहर तो जा नहीं सकती।
भय को भी तुम नष्ट कर सकते। और युगों-युगों से यही
किया गया है- लोग भय को नष्ट करने की, क्रोध को,
काम को, लोभ को और ऐसी कितनी ही चीजों को नष्ट
करने की कोशिश करते रहे हैं। पूरी दुनिया इसी तरह
कोशिश करती रही है, और परिणाम क्या हुआ? मनुष्य
उथल-पुथल हो गया है। कुछ भी नष्ट नहीं हुआ, सब कुछ
वैसा का वसा है, बस चीजें उलझ गई हैं। कुछ भी नष्ट
करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पहली बात कुछ भी
नष्ट किया ही नहीं जा सकता। तो फिर क्या करना है?
भय को तुम्हें समझना है। भय क्या है? कैसे उठता है
भय? कहाँ से आता है? उसका संदेश क्या है? बिना
किसी पक्षपात के उसमें झाँको, तभी तुम समझ पाओगे?
अगर तुम्हारी पहले से ही धारणा बनी हुई है कि भय
गलत है, कि भय नहीं होना चाहिए- 'मुझे भयभीत नहीं
होना चाहिए' - तब तुम उसमें झाँक न पाओगे। भय का
आमना-सामना तुम कैसे कर सकते हो? अगर तुमने पहले
से ही निर्णय ले लिया है कि भय तुम्हारा दुश्मन है, तो
उसकी आँखों में तुम कैसे झाँक सकते हो? दुश्मन की
आँखों में कोई नहीं देखता। अगर तुम सोचते हो कि यह
गलत चीज है तो तुम उससे बचकर निकलना चाहोगे,
उसकी उपेक्षा करना चाहोगे।
पहले सारे पूर्वाग्रह, सारी धारणाएँ, पूरी निंदा को छोड़ो।
भय एक तथ्य है। उसका सामना करना है, उसको
समझना है। और केवल समझ के द्वारा ही उसे रूपांतरित
किया जा सकता है। वास्तव में समझने से ही वह
रूपांतरित हो जाता है। बाकी कुछ और करने की जरूरत
नहीं है; समझ ही उसे रूपांतरित कर देती है।
भय क्या है? पहली बात : भय हमेशा किसी इच्छा के
आसपास पनपता है। तुम प्रसिद्ध होना चाहते हो, संसार
के सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति होना चाहते हो- फिर भय शुरू
होता है। अगर ऐसा न हो सका तो क्या होगा? भय लगता
है। भय उस इच्छा का बाइ-प्रोडक्ट है।
तुम संसार के सबसे धनवान व्यक्ति बनना चाहते हो-
सफलता न मिली तो क्या होगा? सो भीतर से तुम कँपने
लगते हो, भय शुरू हो जाता है। तुम्हारी किसी स्त्री पर
मालकियत है; तुम भयभीत होते हो कि हो सकता है कल
तुम्हारी उस पर मालकियत न रहे, वह किसी और के पास
चली जाए। अगर वह जीवित है तो वह जा सकती है,
सिर्फ मुर्दा स्त्रियाँ कहीं नहीं जातीं। केवल एक लाश
पर ही मालकियत की जा सकती है- उसके साथ कोई भय
नहीं है। वह हमेशा तुम्हारे पास रहेगी।
फर्नीचर पर तुम कब्जा कर सकते हो, उसके साथ कोई
भय नहीं है। लेकिन कौन जानता है? कल वह तुम्हारी
नहीं थी, आज तुम्हारी है, कौन जानता है कल वह किसी
और की हो जाए? भय लगता है। यह भय मालकियत
करने की इच्छा से उठ रहा है, यह एक बाइ-प्रोडक्ट है,
क्योंकि तुम कब्जा करना चाहते हो, इसलिए भय है।
अगर तुम कब्जा करना न चाहो तो फिर कोई भय नहीं
है। अगर तुम्हारी ऐसी कोई इच्छा न हो कि भविष्य में
तुम यह बनना चाहोगे या वह बनना चाहोगे तो फिर कोई
भय नहीं है। नगर तुम स्वर्ग जाना नहीं चाहते तो कोई
भय नहीं होगा, कोई धर्मगुरु तुम्हें डरा न पाएगा। अगर
तुम कहीं जाना नहीं चाहते तो कोई भी तुम्हें डरा नहीं
पाएगा।
अगर तुम इसी क्षण में जीने लगो तो भय मिट जाता है।
भय वासना के कारण पैदा होता है। तो मूलतः वासना भय
को पैदा करती है। झाँको भय में। जब भी भय लगे तो
देखो कि वह कहाँ से आ रहा है- कौन सी इच्छा, कौन सी
वासना उसे निर्मित कर रही है- और फिर उसकी
व्यर्थता को देखो।