खोजें

सोमवार, 27 मार्च 2017

Sammohan



               सम्मोहन

 सम्मोहन एकविद्या है। जिसे जागृत करना सामान्यत: आज के मानव के अति
दुष्कर कार्य है। सम्मोहन विद्या का इतिहास आज या सौ-दो
सौ साल पुराना नहीं बल्कि सम्मोहन प्राचीन काल
से चला रहा है। श्रीराम और श्रीकृष्ण में
सम्मोहन की विद्या जन्म से ही थी। वे
जिसे देख लेते या कोई उन्हें देख लेता वह बस उनकी
माया में खो जाता था। यहां हम बात करेंगे श्रीकृष्ण के
सम्मोहन की। श्रीकृष्ण का एक नाम मोहन
भी है। मोहन अर्थात सभी को मोहने वाला।
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व और सुंदरता सभी का
मन मोह लिया करती है। जिन श्रीकृष्ण
की प्रतिमाएं इतनी सुंदर है वे खुद कितने सुंदर
होंगे। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में सम्मोहन
की कई लीलाएं की हैं। उनकी मधुर
मुस्कान और सुंदर रूप को देखकर गोकुल की गोपियां
अपने आप को रोक नहीं पाती थी और
उनके मोहवश सब कुछ भुलकर बस उनका संग पाने को
लालायित हो जाती थी। श्रीकृष्ण ने माता
यशोदा को भी अपने मुंह में पुरा ब्रह्मांड दिखाकर उस
पल को उनकी याददाश्त से भुला दिया बस यही
है सम्मोहन। श्रीकृष्ण जिसे जो दिखाना, समझाना और
सुनाना चाहते हो वह इसी सम्मोहन के वश बस वैसा
ही करता है जैसा श्रीकृष्ण चाहते हैं।
ऐसी कई घटनाएं उनके जीवन से जुड़ी हैं
जिनमें श्रीकृष्ण के सम्मोहन की झलक है।
सम्मोहन कोई जादू नहीं है .....
मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करके
या एकाग्र करके उस बढ़ी हुई शक्ति से किसी
को प्रभावित करना ही सम्मोहन विद्या है। सम्मोहन
विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ
विद्या है। इसकी जड़ें सुदूर गहराईयों तक स्थित हैं।
भारत वासियों का जीवन अध्यात्म प्रधान रहा है और
भारत वासियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दर्शन
और अध्यात्म को सर्वाधिक महत्व दिया है। इसीलिए
सम्मोहन विद्या को भी प्राचीन समय से 'प्राण
विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता है।
भारतीय दर्शन और भारतीय अध्यात्म, योग और
उसकी शक्तियों से जुड़ा हुआ है। योग शब्द का अर्थ
ही 'जुडऩा' है, यदि इस शब्द को आध्यात्मिक अर्थ में
लेते हैं तो इसका मतलब आत्मा का परमात्मा से मिलन और
दोनों का एकाकार हो जाना ही है। भक्त का भगवान से,
मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, तथा पिण्ड का
ब्रह्माण्ड से मिलन ही योग कहा गया है।
हकीकत में देखा जाए तो यौगिक क्रियाओं का उद्देश्य
मन को पूर्ण रूप से एकाग्र करके प्रभु यानि ईश्वर में
समर्पित कर देना है। और इस समर्पण से जो शक्ति का
अंश प्राप्त होता है, उसी को सम्मोहन शक्ति कहते
हैं ।
अगर करना हो सम्मोहन तो..
मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करके
या एकाग्र करके उस बढ़ी हुई शक्ति से किसी
को प्रभावित करना ही सम्मोहन विद्या है। सम्मोहन
विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ
विद्या है। इसकी जड़ें सुदूर गहराईयों तक स्थित हैं।
भारत वासियों का जीवन अध्यात्म प्रधान रहा है और
भारत वासियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दर्शन
और अध्यात्म को सर्वाधिक महत्व दिया है। इसीलिए
सम्मोहन विद्या को भी प्राचीन समय से 'प्राण
विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता है।
भारतीय दर्शन और भारतीय अध्यात्म, योग और
उसकी शक्तियों से जुड़ा हुआ है। योग शब्द का अर्थ
ही 'जुडऩा' है, यदि इस शब्द को आध्यात्मिक अर्थ में
लेते हैं तो इसका मतलब आत्मा का परमात्मा से मिलन और
दोनों का एकाकार हो जाना ही है। भक्त का भगवान से,
मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, तथा पिण्ड का
ब्रह्माण्ड से मिलन ही योग कहा गया है।
हकीकत में देखा जाए तो यौगिक क्रियाओं का उद्देश्य
मन को पूर्ण रूप से एकाग्र करके प्रभु यानि ईश्वर में
समर्पित कर देना है। और इस समर्पण से जो शक्ति का
अंश प्राप्त होता है, उसी को सम्मोहन शक्ति कहते
हैं ।
अगर करना हो सम्मोहन तो..
सम्मोहन, वशीकरण, जादू-टोना ये ऐसे शब्द हैं जो
हर व्यक्ति को बरबस ही अपनी ओर
खींच लेते हैं। इन शब्दों का जादू ही ऐसा है कि
कोई भी इनकी ओर आसानी से आकर्षित
हो जाता है। लेकिन ये विद्याएं ऐसी हैं जिन्हें पाना
हर किसी के बस की बात नहीं
होती। इसके लिए खुद को पूरी तरह तैयार करना
होता है। आइए जानते हैं कि सम्मोहन सीखने के
लिए हमें क्या तैयारी करनी होगी।
इन विद्याओं को पराविद्या भी कहते हैं, यानी ये
हमें दूसरी दुनिया से जोड़ती हैं।
1. इसके लिए सबसे पहले हमें मानसिक रूप से खुद को
तैयार करना होगा। सम्मोहन, वशीकरण, जादू
जैसी विद्याएं बिना मानसिक रूप से तैयार हुए नहीं
मिल सकती।
2. इसके लिए दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है खुद
को एकाग्र रखना। अगर आपका मन बार-बार भटकता है तो
फिर आप इन विद्याओं को नहीं पा सकते। इसके लिए
आपको सबसे पहले ध्यान करने का अभ्यास शुरू करना होगा।
3. सत्य, इन विद्याओं के लिए मन को साधना होगा और उसका
सबसे पहला कदम है सत्य बोलना। आपको हर समय
सत्य बोलना शुरू करना होगा और झूठ व बहानेबाजी
की आदत छोड़नी होगी।
4. समय की पाबंदी, यह भी इन विद्याओं
के लिए आवश्यक है।
5. पवित्रता, इन विद्याओं के लिए यह भी आवश्यक
है कि आप मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से पवित्र
रहें। अगर इन विद्याओं का कोई गलत इस्तेमाल करने के लिए
आप सीख रहे हैं तो यह मिलना संभव नहीं
है।
6. समय, ऐसी विद्याओं को अर्जित करने के लिए समय
की आवश्यकता होती है, आप में इसके लिए
सब्र होना चाहिए।
7. विश्वास, ऐसी विद्याएं भगवान और खुद में विश्वास
रखने से ही मिलती हैं, अगर आपमें विश्वास
की कमी हैं तो यह नहीं मिल
सकतीं।
फिर हर चीज खींची चली
आएगी आपकी ओर..!
आप अक्सर सोचते होंगे कि कोई चीज बस देखने भर
से आपकी आरे खींची चली आए तो
कैसा हो? लेकिन फिर इसे कपोल कल्पना मानकर भूल
भी जाते होंगे। क्या आप ये जानते हैं कि यह संभव
भी है। इस विद्या को सिद्ध किया जा सकता है और
वह भी बहुत अच्छी तरह से। इसके बाद
आप जिस चीज को देखेंगे, वह आप की ओर
चली आएगी, चाहे इंसान हो या फिर कोई पत्थर।
वास्तव में इसे सम्मोहन, वशीकरण और कई नामों से
पुकारा जाता है। सम्मोहन, वशीकरण का ही
एक रूप है त्राटक साधना। इसके जरिए हम अपनी
आंखों और मस्तिष्क की शक्तियों को जागृत करके
उन्हें इतना प्रभावशाली कर सकते हैं कि मात्र सोचने
और देखने भर से ही कोई भी चीज
हमारे पास आ जाएगी। त्राटक साधना करने के लिए
आपको खुद को कुछ दिनों के लिए नियमों में बांधना होगा। त्राटक
साधना यानी किसी भी वस्तु को एकटक
देखना। यह साधना आप उगते सूर्य, मोमबत्ती,
दीया, किसी यंत्र, दीवार या कागज पर बने
बिंदू आदि में से किसी को देखकर ही कर सकते
हैं। त्राटक साधना में रखें ये सावधानियां - इस साधना के समय
आपके आसपास शांति हो। इस साधना का सबसे अच्छा समय
है आधी रात या फिर ब्रह्म मुहूर्त यानी
सुबह 3 से 5 के बीच। - रात को यदि त्राटक करें तो
सबसे अच्छा साधन है मोमबत्ती। मोमबत्ती को
जलाकर उसे ऐसे रखें कि वह आपकी आंखों के सामने
बराबरी पर हो। - मोमबत्ती को कम से कम चार
फीट की दूरी पर रखें। - पहले
तीन-चार दिन तीन से पांच मिनट तक एकटक
मोमबत्ती की लौ को देखें। इस दौरान
आपकी आंखें नहीं झपकना चाहिए। -
धीरे-धीरे समय सीमा बढ़ाएं, आप पाएंगे थोड़े
ही दिनों में आपकी आंखों की चमक बढ़
गई है और इसमें आकर्षण भी पैदा होने लगा है।
ऐसे करें बिना मंत्र वशीकरण...........
हर व्यक्ति के शरीर में दोनों आइब्रोज के मध्य का
स्थान तीसरी आंख या आज्ञा चक्र कहा जाता
है। हिन्दू धर्म के अनुसार इसीलिए दोनों आइब्रोज के
मध्य ही तिलक किया जाता है। उसका कारण भी
यही होता है ताकि यह नेत्र जागृत हो सके। जब
कोई गुरु अपने शिष्य को दीक्षा देता है तो भी
वह इसी तीसरे नेत्र पर अपना अंगूठा रखता
है।
ऐसा माना जाता है कि इससे प्रकृति में उपस्थित दिव्य शक्तियां
या अन्य किसी भी प्रकार की सकारात्मक
ऊर्जाएं का किसी व्यक्ति में प्रवेश हो जाए
इसीलिए सकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवेश का द्वार खुल
जाता है। एक सामान्य अभ्यास से कोई भी अपने
तीसरे नेत्र को जागृत कर सकते हैं और किसी
भी व्यक्ति से किसी काम को करने को मन
ही मन कहेंगे तो आप देखेंगे की थोड़े दिनों बाद
वह व्यक्ति आपका काम करने को बगैर कहे ही
तैयार हो जाएगा।एक सामान्य अभ्यास आप भी यह
कर सकते है।- इसके लिए सुबह जल्दी उठकर
शोरगुल ना हो ऐसी जगह पर सीधे बैठकर
ध्यान दोनों आइब्रोज के मध्य अपना ध्यान लगाएं ।-
किसी दूर बैठे व्यक्ति का मन मे चितंन करें या दूर तक
की छोटी छोटी अवाजों को सुनने की
कोशिश करें।- यह अभ्यास रोज नियमित रूप से चालीस
दिन तक करे। चालीस दिन पूर्ण होते ही आपको
इस तीसरे नेत्र की शक्ति का धीरे-
धीरे आपको आभास होने लगेगा।- इस दौरान आपको
जिस व्यक्ति के संबंध में आप मन ही मन सोच रहे
हैं उसके साथ घटने वाली किसी घटना का आभास
आपको हो सकता है।इसके बाद आप देखेंगे की थोड़े
दिन में वह व्यक्ति जिसके बारे में आप सोचेंगे वह बिना कहे
ही आपका काम करने को तैयार हो जाएगा।
वशीकरण का सबसे आसान तरीका
तो वशीकरण के कई तरीके प्रचलित हैं। जिनमें
से कुछ तो सार्वजनिक हैं तथा कुछ अत्यंत गोपनीय
किस्म के होते हैं। यंत्र, तंत्र और मंत्र के क्षेत्र में
ही वशीकरण के कई अचूक और १००
प्रतिशत प्रमाणिक साधन या उपाय उपलब्ध हैं। किन्तु हर
प्रयोग में किसी न किसी विशेष विधि एवं नियम-
कायदों का पालन करना पड़ता ही है। इसीलिये,
आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान
ऐसे तरीके या उपाय चाहता है जो कम से कम समय में
सम्पन्न हो सकें। आजकल हर इंसान शार्टकट के जुगाड़ में
लगा रहता है।
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है
और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात
को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि
किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने का
सरल अनुभवी एवं अचूक तरीका या उपाय दिया जा
रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर उपाय इस प्रकार
है-- जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना
चाहते हैं, उसका एक चित्र जो कि लगभग पुस्तक के
आकार का तथा स्पष्ट छवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र
को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठे,
तो उस चित्र की छवि आपकी आंखों के सामने
ही रहे। ५ मिनिट तक प्राणायाम करने के पश्चात उस
चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर
उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात
कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास
जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह
प्रयोग सूर्योदय से पूर्व होना होता है।
यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल
रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से
व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर
रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग
के स्पष्ट प्रभाव दिखने लगते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें