अफीम से उपचार:
सामान्य परिचय : अफीम पोस्त के पौधे से प्राप्त
की जाती है। इसके पौधे की ऊंचाई एक
मीटर, तना हरा, सरल और स्निग्ध (चिकना), पत्ते
आयताकार, पुष्प सफेद, बैंगनी या लाल, सुंदर
कटोरीनुमा एवं चौथाई इंच व्यास वाले आकार में होते है।
इसके फल, पुष्पों के झड़ने के तुरंत बाद ही लग जाते
हैं, जो एक इंच व्यास के अनार के समान होते हैं। ये डोडा
कहलाते हैं। बाद में ये अपने आप फट जाते हैं।
अफीम फल का छिलका पोश्त कहलाता है। सफेद रंग के
सूक्ष्म, गोल, मधुर और स्निग्ध दाने बीज के रूप में डोडे
के अंदर होते हैं, जो आमतौर पर खसखस के नाम से जाने जाते
हैं।
बाजार में अफीम घनाकार बर्फी के रूप में जमाकर
बेची जाती है। नमी का असर होते
ही अफीम मुलायम हो जाती है। इसका
आंतरिक रंग गहरा बादामी और चमकीला होता है,
जबकि बाहरी रंग कालिमा लिए गहरा भूरा होता है। इसमें
विशिष्ट प्रकार की तीव्र गंध होती है, जो
स्वाद में तीखी होती है। गर्म जल में घुल
जाने वाली अफीम जलाने से न तो धुआं देती
है और न राख ही शेष रहती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत अहिफेन।
हिंदी अफीम, पोस्त, पोस्ता, अफीम का डोडा।
मराठी आफू, आफीमु।
गुजराती अफीण।
फारसी तियाग।
अरबी लब्नुल, खखास।
बंगाली आफिम।
अंग्रेजी ओपियुम, पोपी।
लैटिन पापवर सोम्नीफेरम।
रंग : अफीम का रंग काला होता है।
स्वाद : इसका स्वाद कडुवा होता है।
स्वरूप : दाना पोस्ता की हरी फली में सुई
चुभोकर उसका दूध निकालते हैं जो पहले सफेद और जल्द
ही लाल और जम जाने पर काला हो जाता है।
स्वभाव : अफीम गर्म प्रकृति की होती
है।
हानिकारक : अफीम को अधिक मात्रा में सेवन करने से
शरीर को सांवला कर देती है। लोग भ्रमवश
अफीम का प्रयोग संभोग व सेक्स की ताकत बढ़ाने
के लिए करते हैं, जबकि हकीकत यह है कि
अफीम खाने से कुछ दिन बाद मर्द नामर्द हो जाता है।
संभोग शक्ति क्षीण हो जाती है।
दोषों को दूर करने वाला : भांग के बीज अफीम के
दोषों को खत्म कर देती हैं।
खुराक (मात्रा): लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग।
गुण : आयुर्वेदिक मतानुसार : अफीम की प्रकृति
गर्म, स्वाद में तीखा, प्रभाव में नशीला, कफ-वात
शामक, पित्त प्रकोपक, नींद लाने वाली, दर्दनाशक,
पसीना लाने वाली, शारीरिक स्रावों को रोकने
वाली होती है।
यूनानी मतानुसार : अफीम मस्तिष्क की
शक्ति को उत्तेजित करती है, शरीर की
शक्ति व गर्मी को बढ़ाने से आनन्द और संतोष की
अनुभूति प्रदान करती है। आदत पड़ने पर निर्भरता
बढ़ाना, शारीरिक अंगों की पीड़ा दूर करने
की प्रकृति, कामोत्तेजक, स्तम्भन शक्ति बढ़ाने
वाली, आधासीसी, कमर दर्द, जोड़ों के दर्द,
बहुमूत्र, मधुमेह, श्वास के रोग, अतिसार तथा खूनी
दस्त में गुणकारी है।
विशेषज्ञों के मतानुसार : अफीम की रासायनिक
संरचना का विश्लेषण करने पर मुख्य रूप से मार्फिन 5 से 31
प्रतिशत, जल 16 प्रतिशत, थोड़ी-सी मात्रा में
कोडीन, थीबेन, नार्सीन, नार्कोटीन,
पापावरीन, एपोमार्फिन,
आक्सीडीमार्फ्रीन, एपोकोडीन,
ओपियोनिन, मेकोनिन एसिड, दुग्धाम्ल, राल, ग्लूकोज, अमोनिया,
उड़नशील तेल, मैग्नीशियम के लवण आदि तत्त्व
पाए गए हैं। एलोपैथिक चिकित्सा में अफीम से प्राप्त
मोर्फीन, कोडीन का सबसे अधिक उपयोग किया जाता
है। अफीम का प्रभाव मुख्य रूप से मस्तिष्क और वात
नाड़ियों के सुशुम्ना केन्द्र पर ज्यादा होता है। इससे पीड़ा
कम होती है, नींद आती है, स्त्री-
प्रसंग में वीर्य को रोक कर आनन्द देती है,
वीर्यस्तम्भन होता है, उत्तेजना मिलती है,
मादक असर (नशा) होता है और अधिक पसीना आता
है।
दोष : अफीम का अधिक मात्रा में सेवन हानिकारक है
और इससे मृत्यु तक हो सकती है।
निवारण : रीठे का जल, नीम का काढ़ा, मैनफल व
तम्बाकू का काढ़ा, और करमयक शाक का रस निचोड़कर पिलाने से
प्राण त्याग करता हुआ बीमार भी बच जाता है।
विभिन्न रोगों में अफीम से उपचार:
1 सिर दर्द: -आधा ग्राम अफीम और 1 ग्राम जायफल
को दूध में मलकर, इस तैयार लेप को मस्तक पर लगाएं या फिर
आधा ग्राम अफीम को 2 लौंग के चूर्ण के साथ हल्का
गर्म करके खोपड़ी (सिर) पर लेप लगाने से सर्दी
और बादी से उत्पन्न सिर दर्द दूर होगा।
2 गर्भस्राव (गर्भ से रक्त के बहने पर): -40
मिलीग्राम अफीम पिण्ड को खजूर के साथ मिलाकर
दिन में गर्भस्राव से पीड़ित स्त्री को 3 बार खिलाएं।
इससे गर्भस्राव शीघ्र रुकेगा।
3 स्वरदोष (गला खराब होने पर):-अजवायन और
अफीम के डोडे समान मात्रा में पानी में उबाकर छान
लें और फिर छाने हुए पानी से गरारे करने से स्वरदोष में
आराम होगा।
4 कमर का दर्दं:-एक चम्मच पोस्त के दानों को समान मात्रा में
मिश्री के साथ पीसकर एक कप दूध में मिलाकर दिन
में 3 बार सेवन करने से लाभ होगा।
5 अतिसार (दस्त):-*आम की गिरी का चूर्ण 2
चम्मच, अफीम लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर
एक चौथाई चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन कराएं।
*अफीम और केसर को समान मात्रा में लेकर पीस
लें तथा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लें।
इसे शहद के साथ देने से अतिसार में लाभ होता है।
*अफीम को सेंककर खिलाने से दस्त में आराम मिलता है।
*लगभग 4 से 9 ग्राम तक पोस्त के डोडे पीसकर पिलाने
से दस्त मिटता है।"
6 आमातिसार (आंवयुक्त पेचिश):-*भुनी हुई लहसुन
की कली में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
अफीम मिलाकर खाने से इस रोग में राहत में मिलती
है।
*5 ग्राम अफीम, मोचरस, बेलगिरी, इन्द्रजौ,
गुलधावा, आम की गुठली की गिरी को
10-10 ग्राम लें। प्रत्येक औषधि को अलग-अलग
पीसकर चूर्ण बना लें। फिर सबको एकत्रकर उसमें
अफीम मिला लें। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूर्ण को
लस्सी के साथ सेवन करने से पेचिश के रोगी का रोग
ठीक हो जाता है।"
7 उल्टी:-*कपूर, नौसादर और अफीम बराबर मात्रा
में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां शहद के साथ बना लें।
दिन में 3 बार 1-1 गोली पानी के साथ लें।
*अफीम, नौसादर और कपूर को बराबर मात्रा में लेकर
पीसकर रख लें। फिर इसके अंदर पानी डालकर मूंग
के बराबर की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इस
1-1 गोली को ठंडे पानी के साथ खाने से
उल्टी और उबकाई आना बंद हो जाती है।"
8 अनिद्रा (नींद का कम आना):-गुड़ और
पीपलामूल का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिला लें।
इसकी 1 चम्मच की मात्रा में अफीम
की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग मात्रा मिलाकर रात्रि में
भोजन के बाद सेवन करने से लाभ होता है।
9 नपुंसकता लाने वाला: -कुछ लोग भ्रमवश अफीम का
प्रयोग संभोग व सेक्स की ताकत बढ़ाने के लिए करते
हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि अफीम खाने से कुछ
दिन व्यक्ति नामर्द हो जाता है और उसकी संभोग
(सेक्स) शक्ति क्षीण हो जाती है।
10 मस्तक पीड़ा:-1 ग्राम अफीम और 2 लौंग को
पीसकर लेप करने से बादी और सर्दी के
कारण उत्पन्न मस्तक पीड़ा मिटती है।
11 आंखों के रोग: -आंख के दर्द और आंख के दूसरे रोगों में
इसका लेप बहुत लाभकारी है।
12 नकसीर (नाक से खून आने पर):-अफीम और
कुंदरू गोंद दोनों बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर
सूंघने से नकसीर बंद होती है।
13 केश (बाल): -अफीम के बीजों को दूध में
पीसकर सिर पर लगाने से इसमें होने वाली फोड़े
फुन्सियां एवं रूसी साफ हो जाती है।
14 दंतशूल (दांत का दर्द): -*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
अफीम और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर, दोनों को
दांतों में रखने से दाड़ की पीड़ा मिटती है और
दांत के छेद में रखने से दांतों का दर्द मिटता है।
*अफीम और नौसादर बराबर की मात्रा में मिलाकर
कीड़ा लगे दांत के छेद में दबाकर रखने से दांत दर्द में
राहत मिलती है।"
15 कान का दर्द: -*अफीम को ग्लिसरीन में
मिलाकर बूंद-बूंद करके रोजाना हर 3-4 घंटे के बाद 2 बूंदे कान
में डालने से कान का दर्द कम हो जाता है।
*अफीम की लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग भस्म
को गुलाब के तेल में मिलाकर कान में टपकाने से पीड़ा
मिटती है।
*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम को आग पर पका
लें। फिर इसे गुलरोगन के साथ पीसकर कान में डालें। इससे
सर्दी की वजह से कान में होने वाला दर्द
ठीक हो जाता है।
*4 चावल भर अफीम के पत्तों की राख को गुलाब
के तेल में मिलाकर कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता
है।"
16 खांसी: -*पोस्त के बीज सहित इसके 60
ग्राम डोडे का काढ़ा बना लें, उसमें 50 ग्राम बूरा मिलाकर शर्बत
बनाकर पिलाने से नजला-जुकाम व खांसी मिटती है।
*पोस्त के डंठल अलग करके, इसके दो डोडे लें तथा इन्हें 2
ग्राम सेंधानमक के साथ 350 मिलीलीटर पानी
में उबाल लें, जब 100 मिलीलीटर पानी शेष
रह जाए तो छानकर सोते समय पिलाने से खांसी
मिटती है।
*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम को मुनक्के में
रखकर निगल लें। खांसी का दौरा शांत होकर नींद आ
जाएगी।
*20 से 40 मिलीलीटर वन्यकान्हू के
अफीम बीजों का काढ़ा रोजाना 3-4 बार सेवन करने से
खांसी ठीक हो जाती है।
*1 से 2 ग्राम वन्यकान्हू की अफीम को सुबह-
शाम सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
*क्षय (टी.बी.) रोग के रोगी को यदि
खांसी के कारण नींद न आती हो तो शाम के
समय लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम को मुनक्का में
भरकर निगल लेने से रात में चैन की नींद
आती है और खांसी भी बार-बार नहीं
आती है।"
17 आमाशय की सूजन और दर्द: -आमाशय की
झिल्ली की सूजन और पेट के दर्द में इसका लेप
करने से आमाशय की सूजन और पेट के दर्द में बहुत
लाभ मिलता है।
18 संग्रहणी (पेचिश): -अफीम और बछनाग
3-3 ग्राम, लौह भस्म 250 ग्राम और अभ्रक डेढ़ ग्राम इन
चारों वस्तुओं को दूध में घोटकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
की गोलियां बनाकर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करनी
चाहिए। खाने में जल को त्याग करके केवल दूध का ही
लेना चाहिए।
19 खुजली :-अफीम को तिल के तेल में मिलाकर
मालिश करने से खुजली मिटती है।
20 जोंक के डंक मारने पर: -जोंक का डंक अगर पक जाए तो
उस पर इसके दानों को पीसकर लेप करना चाहिए।
21 बुखार: -*अफीम एक डोडे और सात कालीमिर्चों
को उबालकर सुबह-शाम पिलाने से चतुर्थिक (चार दिन के अंतर
पर आने वाला बुखार) ज्वर मिटता है।
*अफीम तथा कपूर को एक साथ पीसकर देने से
पुराना बुखार ठीक हो जाता है।"
22 नासूर: -मनुष्य के नाखून की राख में लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग अफीम मिला लें, फिर इसे आग पर पकाकर
खाये। इससे नासूर में लाभ होता है।
23 गर्भाशय की पीड़ा:-प्रसव (बच्चे के जन्म
देने) होने के पश्चात् गर्भाशय की पीड़ा मिटाने के
लिए अफीम के डोडों का काढ़ा (इसका उबला हुआ
पानी) पिलाना चाहिए।
24 श्वास रोग: -वनकान्हू की अफीम 1 से 2
ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वास में लाभकारी
होता है।
25 काली खांसी: -एक ग्राम अफीम, 10
ग्राम मुलहठी का चूर्ण, 10 ग्राम बबूल का गोंद, 10
ग्राम निशासता को पीसकर मूंग के आकार की गोलियां
बना लेते हैं। यह 1 से 2 वर्ष वाले को बच्चे को 1
गोली, 2 से 4 वर्ष वाले को 2 गोली तथा 4 से 8
वर्ष वाले को 3 गोली सुबह-शाम पानी के साथ
सेवन करने से काली खांसी, कुकर खांसी के
रोग मे लाभ होता है। यदि कफ कड़ा हो तो प्रवाल भस्म
लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग शहद से देना चाहिए। इससे
खांसी के साथ बलगम निकलकर आराम आ जाता है।
26 दांतों में कीड़े लगना: -हींग एवं अफीम
मिलाकर गोली बना लें। इन गोलियों को दांत के गड्ढ़े में रखने
से कीड़े मर जाते हैं तथा दर्द में आराम मिलता है।
27 बंद जुकाम: -थोड़ी सी अफीम खाकर
उसके ऊपर से गर्म दूध पीने से सर्दी का जुकाम
दूर हो जाता है।
28 दस्त: -*एक ग्राम अफीम और एक ग्राम केसर को
मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसके बाद एक-
एक गोली दिन में 3 बार शहद के साथ खुराक के रूप में
सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
*अफीम और समुद्रफेन को मिलाकर खाने से दस्त का
आना रुक जाता है। अफीम, मोचरस और धाय के फूल को
मिलाकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस बने चूर्ण की 3
से 6 ग्राम मात्रा गाय के दूध से जमे दही में मिलाकर लेने
से अतिसार में लाभ मिलता है।
*अफीम 3 ग्राम, अकरकरा 7 ग्राम, झाऊ के फूल 14
ग्राम, सामक 14 ग्राम, हुबुलास 14 ग्राम को लेकर
अच्छी तरह पीसकर बबूल के गोंद के रस में
मिलाकर छोटी-छोटी लगभग 3-3 ग्राम की
गोलियां बनाकर रख लें। फिर इन बनी गोलियों को सेवन करने
से दस्त का आना बंद हो जाता है। "
29 बवासीर (अर्श): -*अफीम तथा कुचला को
पीसकर मलहम बनायें। मलहम को मस्सों पर लगाने से
मस्से सूखते हैं और दर्द में आराम रहता है।
*बवासीर के मस्सों पर रसवंती तथा अफीम
को पीसकर लेप करने से दर्द कम होता है तथा खून का
बहना भी बंद हो जाता है।
*धतूरे के पत्तों के रस में अफीम मिलाकर लेप करने से
दर्द जल्द ही बंद हो जाता है। "
30 वात रोग: -लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम खाने
से गठिया के तेज दर्द में भी आराम हो जाता है।
31 नाक के रोग: -अफीम और कुंदरू के गोंद को बराबर
मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप बना लें।
इस लेप को सूंघने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।
32 वीर्य रोग : -अफीम लगभग 1 ग्राम का चौथा
भाग के घोल में एक मुठ्ठी चने भिगोकर सुबह-शाम
अंकुरित होने पर 1-1 चना चबा लें। केवल 21 दिन तक यह
प्रयोग करने से स्वप्नदोष (नाइटफाल) और धातु (वीर्य)
कमी दूर होती है।
33 अंगुलियों का कांपना: -तिल के तेल में अफीम और
आक के पत्ते मिलाकर गर्म करके लेप करने से हाथ-पैर
की अंगुलियों का कम्पन दूर हो जाता है।
34 जोड़ों (गठिया) में दर्द: -*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
अफीम और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कपूर
की गोली बनाकर खायें। इससे शरीर में
पसीना अधिक मात्रा में आकर गठिया के दर्द में
जल्दी लाभ मिलता होता है।
*4 ग्राम कपूर और एक ग्राम अफीम को पीसकर
20 गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसकी एक-एक
गोली सुबह-शाम गर्म पानी से लें, इससे जोड़ों के
दर्द में आराम मिलेगा।
*250 मिलीलीटर सरसों का तेल, 10 ग्राम
अजवायन, 3 पुती लहसुन कुचली हुई दो लौंग का
चूर्ण और चुटकी भर अफीम सबको मिलाकर आग
पर अच्छी तरह पका लें। जब अजवायन, लहसुन आदि
सभी जलकर काले पड़ जाएं, तो तेल को आग से
नीचे उतारकर छान लें। इस तेल की मालिश सुबह-
शाम प्रतिदिन जोड़ों पर करने से रोगी को लाभ मिलता है।"
35 हैजा: -कालीमिर्च, हींग और अफीम
आदि को समान मात्रा में लेकर पीसकर रख लें। इसे
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग प्रत्येक 2 से 4 घण्टे पर
रोगी को सेवन करायें। यह योग हैजा के प्रथम अवस्था
में ही देने से रोग आगे नहीं बढ़ता और रोग
ठीक हो जाता है।
36 हाथ-पैरों की ऐंठन: -*1.25 ग्राम अफीम या
इतनी ही मात्रा में भांग का सेवन करने से हाथ-
पैरो की ऐंठन दूर हो जाती है।
*अफीम का मैल, तेल में मिलाकर गर्म करके मालिश करने
से हाथ-पैरों की ऐंठन दूर हो जाती है।"
37 मानसिक उन्माद (पागलपन): -अफीम को थोड़ी
मात्रा में खिलाने से मानसिक उन्माद (पागलपन) और घबराहट
दूर हो जाती है।
38 बालरोग: -अफीम, भुनी हुई हल्दी,
भुना हुआ सुहागा को उबाले हुए पानी में मिलाकर घोल
बना लें। इस घोल की 4 बूंद आंखों में डालने से
सर्दी में आई हुई आंख का दर्द, आंखों का सूजना और
लाल होना दूर हो जाता है।
39 वन्यकाहू के बीज: -वन्यकाहू के बीज के
तेल से सिर में मालिश करने से बालों में बहुत लाभ होता है।
40 गले के रोग: -मूंग की दाल के दाने की
आधी मात्रा के बराबर अफीम खाने से सर्दी
लगने की वजह से बैठा हुआ गला खुल जाता है।
सामान्य परिचय : अफीम पोस्त के पौधे से प्राप्त
की जाती है। इसके पौधे की ऊंचाई एक
मीटर, तना हरा, सरल और स्निग्ध (चिकना), पत्ते
आयताकार, पुष्प सफेद, बैंगनी या लाल, सुंदर
कटोरीनुमा एवं चौथाई इंच व्यास वाले आकार में होते है।
इसके फल, पुष्पों के झड़ने के तुरंत बाद ही लग जाते
हैं, जो एक इंच व्यास के अनार के समान होते हैं। ये डोडा
कहलाते हैं। बाद में ये अपने आप फट जाते हैं।
अफीम फल का छिलका पोश्त कहलाता है। सफेद रंग के
सूक्ष्म, गोल, मधुर और स्निग्ध दाने बीज के रूप में डोडे
के अंदर होते हैं, जो आमतौर पर खसखस के नाम से जाने जाते
हैं।
बाजार में अफीम घनाकार बर्फी के रूप में जमाकर
बेची जाती है। नमी का असर होते
ही अफीम मुलायम हो जाती है। इसका
आंतरिक रंग गहरा बादामी और चमकीला होता है,
जबकि बाहरी रंग कालिमा लिए गहरा भूरा होता है। इसमें
विशिष्ट प्रकार की तीव्र गंध होती है, जो
स्वाद में तीखी होती है। गर्म जल में घुल
जाने वाली अफीम जलाने से न तो धुआं देती
है और न राख ही शेष रहती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत अहिफेन।
हिंदी अफीम, पोस्त, पोस्ता, अफीम का डोडा।
मराठी आफू, आफीमु।
गुजराती अफीण।
फारसी तियाग।
अरबी लब्नुल, खखास।
बंगाली आफिम।
अंग्रेजी ओपियुम, पोपी।
लैटिन पापवर सोम्नीफेरम।
रंग : अफीम का रंग काला होता है।
स्वाद : इसका स्वाद कडुवा होता है।
स्वरूप : दाना पोस्ता की हरी फली में सुई
चुभोकर उसका दूध निकालते हैं जो पहले सफेद और जल्द
ही लाल और जम जाने पर काला हो जाता है।
स्वभाव : अफीम गर्म प्रकृति की होती
है।
हानिकारक : अफीम को अधिक मात्रा में सेवन करने से
शरीर को सांवला कर देती है। लोग भ्रमवश
अफीम का प्रयोग संभोग व सेक्स की ताकत बढ़ाने
के लिए करते हैं, जबकि हकीकत यह है कि
अफीम खाने से कुछ दिन बाद मर्द नामर्द हो जाता है।
संभोग शक्ति क्षीण हो जाती है।
दोषों को दूर करने वाला : भांग के बीज अफीम के
दोषों को खत्म कर देती हैं।
खुराक (मात्रा): लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग।
गुण : आयुर्वेदिक मतानुसार : अफीम की प्रकृति
गर्म, स्वाद में तीखा, प्रभाव में नशीला, कफ-वात
शामक, पित्त प्रकोपक, नींद लाने वाली, दर्दनाशक,
पसीना लाने वाली, शारीरिक स्रावों को रोकने
वाली होती है।
यूनानी मतानुसार : अफीम मस्तिष्क की
शक्ति को उत्तेजित करती है, शरीर की
शक्ति व गर्मी को बढ़ाने से आनन्द और संतोष की
अनुभूति प्रदान करती है। आदत पड़ने पर निर्भरता
बढ़ाना, शारीरिक अंगों की पीड़ा दूर करने
की प्रकृति, कामोत्तेजक, स्तम्भन शक्ति बढ़ाने
वाली, आधासीसी, कमर दर्द, जोड़ों के दर्द,
बहुमूत्र, मधुमेह, श्वास के रोग, अतिसार तथा खूनी
दस्त में गुणकारी है।
विशेषज्ञों के मतानुसार : अफीम की रासायनिक
संरचना का विश्लेषण करने पर मुख्य रूप से मार्फिन 5 से 31
प्रतिशत, जल 16 प्रतिशत, थोड़ी-सी मात्रा में
कोडीन, थीबेन, नार्सीन, नार्कोटीन,
पापावरीन, एपोमार्फिन,
आक्सीडीमार्फ्रीन, एपोकोडीन,
ओपियोनिन, मेकोनिन एसिड, दुग्धाम्ल, राल, ग्लूकोज, अमोनिया,
उड़नशील तेल, मैग्नीशियम के लवण आदि तत्त्व
पाए गए हैं। एलोपैथिक चिकित्सा में अफीम से प्राप्त
मोर्फीन, कोडीन का सबसे अधिक उपयोग किया जाता
है। अफीम का प्रभाव मुख्य रूप से मस्तिष्क और वात
नाड़ियों के सुशुम्ना केन्द्र पर ज्यादा होता है। इससे पीड़ा
कम होती है, नींद आती है, स्त्री-
प्रसंग में वीर्य को रोक कर आनन्द देती है,
वीर्यस्तम्भन होता है, उत्तेजना मिलती है,
मादक असर (नशा) होता है और अधिक पसीना आता
है।
दोष : अफीम का अधिक मात्रा में सेवन हानिकारक है
और इससे मृत्यु तक हो सकती है।
निवारण : रीठे का जल, नीम का काढ़ा, मैनफल व
तम्बाकू का काढ़ा, और करमयक शाक का रस निचोड़कर पिलाने से
प्राण त्याग करता हुआ बीमार भी बच जाता है।
विभिन्न रोगों में अफीम से उपचार:
1 सिर दर्द: -आधा ग्राम अफीम और 1 ग्राम जायफल
को दूध में मलकर, इस तैयार लेप को मस्तक पर लगाएं या फिर
आधा ग्राम अफीम को 2 लौंग के चूर्ण के साथ हल्का
गर्म करके खोपड़ी (सिर) पर लेप लगाने से सर्दी
और बादी से उत्पन्न सिर दर्द दूर होगा।
2 गर्भस्राव (गर्भ से रक्त के बहने पर): -40
मिलीग्राम अफीम पिण्ड को खजूर के साथ मिलाकर
दिन में गर्भस्राव से पीड़ित स्त्री को 3 बार खिलाएं।
इससे गर्भस्राव शीघ्र रुकेगा।
3 स्वरदोष (गला खराब होने पर):-अजवायन और
अफीम के डोडे समान मात्रा में पानी में उबाकर छान
लें और फिर छाने हुए पानी से गरारे करने से स्वरदोष में
आराम होगा।
4 कमर का दर्दं:-एक चम्मच पोस्त के दानों को समान मात्रा में
मिश्री के साथ पीसकर एक कप दूध में मिलाकर दिन
में 3 बार सेवन करने से लाभ होगा।
5 अतिसार (दस्त):-*आम की गिरी का चूर्ण 2
चम्मच, अफीम लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर
एक चौथाई चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन कराएं।
*अफीम और केसर को समान मात्रा में लेकर पीस
लें तथा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लें।
इसे शहद के साथ देने से अतिसार में लाभ होता है।
*अफीम को सेंककर खिलाने से दस्त में आराम मिलता है।
*लगभग 4 से 9 ग्राम तक पोस्त के डोडे पीसकर पिलाने
से दस्त मिटता है।"
6 आमातिसार (आंवयुक्त पेचिश):-*भुनी हुई लहसुन
की कली में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
अफीम मिलाकर खाने से इस रोग में राहत में मिलती
है।
*5 ग्राम अफीम, मोचरस, बेलगिरी, इन्द्रजौ,
गुलधावा, आम की गुठली की गिरी को
10-10 ग्राम लें। प्रत्येक औषधि को अलग-अलग
पीसकर चूर्ण बना लें। फिर सबको एकत्रकर उसमें
अफीम मिला लें। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूर्ण को
लस्सी के साथ सेवन करने से पेचिश के रोगी का रोग
ठीक हो जाता है।"
7 उल्टी:-*कपूर, नौसादर और अफीम बराबर मात्रा
में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां शहद के साथ बना लें।
दिन में 3 बार 1-1 गोली पानी के साथ लें।
*अफीम, नौसादर और कपूर को बराबर मात्रा में लेकर
पीसकर रख लें। फिर इसके अंदर पानी डालकर मूंग
के बराबर की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इस
1-1 गोली को ठंडे पानी के साथ खाने से
उल्टी और उबकाई आना बंद हो जाती है।"
8 अनिद्रा (नींद का कम आना):-गुड़ और
पीपलामूल का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिला लें।
इसकी 1 चम्मच की मात्रा में अफीम
की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग मात्रा मिलाकर रात्रि में
भोजन के बाद सेवन करने से लाभ होता है।
9 नपुंसकता लाने वाला: -कुछ लोग भ्रमवश अफीम का
प्रयोग संभोग व सेक्स की ताकत बढ़ाने के लिए करते
हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि अफीम खाने से कुछ
दिन व्यक्ति नामर्द हो जाता है और उसकी संभोग
(सेक्स) शक्ति क्षीण हो जाती है।
10 मस्तक पीड़ा:-1 ग्राम अफीम और 2 लौंग को
पीसकर लेप करने से बादी और सर्दी के
कारण उत्पन्न मस्तक पीड़ा मिटती है।
11 आंखों के रोग: -आंख के दर्द और आंख के दूसरे रोगों में
इसका लेप बहुत लाभकारी है।
12 नकसीर (नाक से खून आने पर):-अफीम और
कुंदरू गोंद दोनों बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर
सूंघने से नकसीर बंद होती है।
13 केश (बाल): -अफीम के बीजों को दूध में
पीसकर सिर पर लगाने से इसमें होने वाली फोड़े
फुन्सियां एवं रूसी साफ हो जाती है।
14 दंतशूल (दांत का दर्द): -*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
अफीम और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर, दोनों को
दांतों में रखने से दाड़ की पीड़ा मिटती है और
दांत के छेद में रखने से दांतों का दर्द मिटता है।
*अफीम और नौसादर बराबर की मात्रा में मिलाकर
कीड़ा लगे दांत के छेद में दबाकर रखने से दांत दर्द में
राहत मिलती है।"
15 कान का दर्द: -*अफीम को ग्लिसरीन में
मिलाकर बूंद-बूंद करके रोजाना हर 3-4 घंटे के बाद 2 बूंदे कान
में डालने से कान का दर्द कम हो जाता है।
*अफीम की लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग भस्म
को गुलाब के तेल में मिलाकर कान में टपकाने से पीड़ा
मिटती है।
*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम को आग पर पका
लें। फिर इसे गुलरोगन के साथ पीसकर कान में डालें। इससे
सर्दी की वजह से कान में होने वाला दर्द
ठीक हो जाता है।
*4 चावल भर अफीम के पत्तों की राख को गुलाब
के तेल में मिलाकर कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता
है।"
16 खांसी: -*पोस्त के बीज सहित इसके 60
ग्राम डोडे का काढ़ा बना लें, उसमें 50 ग्राम बूरा मिलाकर शर्बत
बनाकर पिलाने से नजला-जुकाम व खांसी मिटती है।
*पोस्त के डंठल अलग करके, इसके दो डोडे लें तथा इन्हें 2
ग्राम सेंधानमक के साथ 350 मिलीलीटर पानी
में उबाल लें, जब 100 मिलीलीटर पानी शेष
रह जाए तो छानकर सोते समय पिलाने से खांसी
मिटती है।
*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम को मुनक्के में
रखकर निगल लें। खांसी का दौरा शांत होकर नींद आ
जाएगी।
*20 से 40 मिलीलीटर वन्यकान्हू के
अफीम बीजों का काढ़ा रोजाना 3-4 बार सेवन करने से
खांसी ठीक हो जाती है।
*1 से 2 ग्राम वन्यकान्हू की अफीम को सुबह-
शाम सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
*क्षय (टी.बी.) रोग के रोगी को यदि
खांसी के कारण नींद न आती हो तो शाम के
समय लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम को मुनक्का में
भरकर निगल लेने से रात में चैन की नींद
आती है और खांसी भी बार-बार नहीं
आती है।"
17 आमाशय की सूजन और दर्द: -आमाशय की
झिल्ली की सूजन और पेट के दर्द में इसका लेप
करने से आमाशय की सूजन और पेट के दर्द में बहुत
लाभ मिलता है।
18 संग्रहणी (पेचिश): -अफीम और बछनाग
3-3 ग्राम, लौह भस्म 250 ग्राम और अभ्रक डेढ़ ग्राम इन
चारों वस्तुओं को दूध में घोटकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
की गोलियां बनाकर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करनी
चाहिए। खाने में जल को त्याग करके केवल दूध का ही
लेना चाहिए।
19 खुजली :-अफीम को तिल के तेल में मिलाकर
मालिश करने से खुजली मिटती है।
20 जोंक के डंक मारने पर: -जोंक का डंक अगर पक जाए तो
उस पर इसके दानों को पीसकर लेप करना चाहिए।
21 बुखार: -*अफीम एक डोडे और सात कालीमिर्चों
को उबालकर सुबह-शाम पिलाने से चतुर्थिक (चार दिन के अंतर
पर आने वाला बुखार) ज्वर मिटता है।
*अफीम तथा कपूर को एक साथ पीसकर देने से
पुराना बुखार ठीक हो जाता है।"
22 नासूर: -मनुष्य के नाखून की राख में लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग अफीम मिला लें, फिर इसे आग पर पकाकर
खाये। इससे नासूर में लाभ होता है।
23 गर्भाशय की पीड़ा:-प्रसव (बच्चे के जन्म
देने) होने के पश्चात् गर्भाशय की पीड़ा मिटाने के
लिए अफीम के डोडों का काढ़ा (इसका उबला हुआ
पानी) पिलाना चाहिए।
24 श्वास रोग: -वनकान्हू की अफीम 1 से 2
ग्राम की मात्रा में सेवन करने से श्वास में लाभकारी
होता है।
25 काली खांसी: -एक ग्राम अफीम, 10
ग्राम मुलहठी का चूर्ण, 10 ग्राम बबूल का गोंद, 10
ग्राम निशासता को पीसकर मूंग के आकार की गोलियां
बना लेते हैं। यह 1 से 2 वर्ष वाले को बच्चे को 1
गोली, 2 से 4 वर्ष वाले को 2 गोली तथा 4 से 8
वर्ष वाले को 3 गोली सुबह-शाम पानी के साथ
सेवन करने से काली खांसी, कुकर खांसी के
रोग मे लाभ होता है। यदि कफ कड़ा हो तो प्रवाल भस्म
लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग शहद से देना चाहिए। इससे
खांसी के साथ बलगम निकलकर आराम आ जाता है।
26 दांतों में कीड़े लगना: -हींग एवं अफीम
मिलाकर गोली बना लें। इन गोलियों को दांत के गड्ढ़े में रखने
से कीड़े मर जाते हैं तथा दर्द में आराम मिलता है।
27 बंद जुकाम: -थोड़ी सी अफीम खाकर
उसके ऊपर से गर्म दूध पीने से सर्दी का जुकाम
दूर हो जाता है।
28 दस्त: -*एक ग्राम अफीम और एक ग्राम केसर को
मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसके बाद एक-
एक गोली दिन में 3 बार शहद के साथ खुराक के रूप में
सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
*अफीम और समुद्रफेन को मिलाकर खाने से दस्त का
आना रुक जाता है। अफीम, मोचरस और धाय के फूल को
मिलाकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस बने चूर्ण की 3
से 6 ग्राम मात्रा गाय के दूध से जमे दही में मिलाकर लेने
से अतिसार में लाभ मिलता है।
*अफीम 3 ग्राम, अकरकरा 7 ग्राम, झाऊ के फूल 14
ग्राम, सामक 14 ग्राम, हुबुलास 14 ग्राम को लेकर
अच्छी तरह पीसकर बबूल के गोंद के रस में
मिलाकर छोटी-छोटी लगभग 3-3 ग्राम की
गोलियां बनाकर रख लें। फिर इन बनी गोलियों को सेवन करने
से दस्त का आना बंद हो जाता है। "
29 बवासीर (अर्श): -*अफीम तथा कुचला को
पीसकर मलहम बनायें। मलहम को मस्सों पर लगाने से
मस्से सूखते हैं और दर्द में आराम रहता है।
*बवासीर के मस्सों पर रसवंती तथा अफीम
को पीसकर लेप करने से दर्द कम होता है तथा खून का
बहना भी बंद हो जाता है।
*धतूरे के पत्तों के रस में अफीम मिलाकर लेप करने से
दर्द जल्द ही बंद हो जाता है। "
30 वात रोग: -लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम खाने
से गठिया के तेज दर्द में भी आराम हो जाता है।
31 नाक के रोग: -अफीम और कुंदरू के गोंद को बराबर
मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप बना लें।
इस लेप को सूंघने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।
32 वीर्य रोग : -अफीम लगभग 1 ग्राम का चौथा
भाग के घोल में एक मुठ्ठी चने भिगोकर सुबह-शाम
अंकुरित होने पर 1-1 चना चबा लें। केवल 21 दिन तक यह
प्रयोग करने से स्वप्नदोष (नाइटफाल) और धातु (वीर्य)
कमी दूर होती है।
33 अंगुलियों का कांपना: -तिल के तेल में अफीम और
आक के पत्ते मिलाकर गर्म करके लेप करने से हाथ-पैर
की अंगुलियों का कम्पन दूर हो जाता है।
34 जोड़ों (गठिया) में दर्द: -*लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग
अफीम और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कपूर
की गोली बनाकर खायें। इससे शरीर में
पसीना अधिक मात्रा में आकर गठिया के दर्द में
जल्दी लाभ मिलता होता है।
*4 ग्राम कपूर और एक ग्राम अफीम को पीसकर
20 गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसकी एक-एक
गोली सुबह-शाम गर्म पानी से लें, इससे जोड़ों के
दर्द में आराम मिलेगा।
*250 मिलीलीटर सरसों का तेल, 10 ग्राम
अजवायन, 3 पुती लहसुन कुचली हुई दो लौंग का
चूर्ण और चुटकी भर अफीम सबको मिलाकर आग
पर अच्छी तरह पका लें। जब अजवायन, लहसुन आदि
सभी जलकर काले पड़ जाएं, तो तेल को आग से
नीचे उतारकर छान लें। इस तेल की मालिश सुबह-
शाम प्रतिदिन जोड़ों पर करने से रोगी को लाभ मिलता है।"
35 हैजा: -कालीमिर्च, हींग और अफीम
आदि को समान मात्रा में लेकर पीसकर रख लें। इसे
लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग प्रत्येक 2 से 4 घण्टे पर
रोगी को सेवन करायें। यह योग हैजा के प्रथम अवस्था
में ही देने से रोग आगे नहीं बढ़ता और रोग
ठीक हो जाता है।
36 हाथ-पैरों की ऐंठन: -*1.25 ग्राम अफीम या
इतनी ही मात्रा में भांग का सेवन करने से हाथ-
पैरो की ऐंठन दूर हो जाती है।
*अफीम का मैल, तेल में मिलाकर गर्म करके मालिश करने
से हाथ-पैरों की ऐंठन दूर हो जाती है।"
37 मानसिक उन्माद (पागलपन): -अफीम को थोड़ी
मात्रा में खिलाने से मानसिक उन्माद (पागलपन) और घबराहट
दूर हो जाती है।
38 बालरोग: -अफीम, भुनी हुई हल्दी,
भुना हुआ सुहागा को उबाले हुए पानी में मिलाकर घोल
बना लें। इस घोल की 4 बूंद आंखों में डालने से
सर्दी में आई हुई आंख का दर्द, आंखों का सूजना और
लाल होना दूर हो जाता है।
39 वन्यकाहू के बीज: -वन्यकाहू के बीज के
तेल से सिर में मालिश करने से बालों में बहुत लाभ होता है।
40 गले के रोग: -मूंग की दाल के दाने की
आधी मात्रा के बराबर अफीम खाने से सर्दी
लगने की वजह से बैठा हुआ गला खुल जाता है।
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