खोजें

सोमवार, 3 जून 2019

बांके बिहारी वृंदावन कथा

🍂बाँके बिहारी वृंदावन कथा 🍂
🍂वृंदावन में एक कथा प्रचलित है कि एक ठाकुर भूपेंद्र सिंह नामक व्यक्ति थे जिनकी भरतपुर के पास एक रियासत थी। इन्होंने अपना पूरा जीवन भोग विलास में बिताया। धर्म के नाम पर ये कभी रामायण की कथा करवाते तो कभी भागवत की कथा करवाते थे, बस इसी को यह धर्म समझते थे। 🍂
🍂झूठी शान और शौकत का दिखावा करता था ठाकुर
झूठी शान और शौकत का दिखावा करने वाले ठाकुर भूपेंदर सिंह की पत्नी भगवान पर काफी विश्वास रखती थी। वह साल में नियमानुसार वृंदावन जा कर श्री बांके बिहारी की पूजा करती। जबकि भूपेंदर सिंह भगवान में कभी आस्था विश्वास नहीं रखता था। उल्टा वह अपन बीवी को इस बात का ताना भी मारता था। लेकिन उनकी पत्नी ने कभी भी इस बात का बुरा नहीं माना।🍂
🍂एक दिन भूपेंद्र सिंह शिकार से लौट कर अपने महल को फूलों से सजा हुआ पाते हैं। घर में विशेष प्रसाद बनाया गया था लेकिन ये आते ही उखड़ गए और नौकरों पर चिल्लाने लगे। तब उनकी बीवी ने बताया कि आज प्रकट दिवस है जिसके बारे में वे उन्हें पहले बता चुकी हैं। लेकिन भूपेंद्र सिंह को याद ना होने के बाद कारण वह उन पर चिल्लाने लगे, जिसके बाद उन्हें लज्जा महसूस हुई और वह अपनी बीवी के सामने चुप हो गए। ,🍂
🍂बांके बिहारी की पोषाक करवा दी गायब
धीरे धीरे ठाकुर भूपेंद्र सिंह की रुचि भोग विलास में बढ़ने लगी और वह अपनी पत्नी से दूर होते चले गए। ऐसे में उनकी पत्नी कृष्ण जी के और करीब चली गईं और एक दिन उन्होंने ठान लिया कि वह अब से वृंदावन में ही रहेंगी। ठाकुर की पत्नी ने बांके बिहारी के लिए पोषाक तैयार करवाई थी जिस बारे में ठाकुर को पता चल गया था और वह उसे गायब करवाना चाहते थे। उन्होंने पोषाक गायब करवा दी जिसके बारे में ठाकुर की पत्नी को पता ही नहीं चला और वह वृंदावन में उस पोषाक का इंतजार करने लगी। 🍂
,🍂जब वृंदावन पहुंचे तो देखा...
ठाकुर ने यह खबर अपनी पत्नी को वृंदावन में जा कर देने की सोची। जब वह वृंदावन पहुंचे तो देखते हैं कि वहां पर सभी भक्त बांके बिहारी लाल की जय !! जय जय श्री राधे !! करते हुए कृष्ण भीड़ लगाए हुए थे। लेकिन ठाकुर के मन में अपनी पत्नी को नीचा दिखाने का विचार था। वह जैसे ही अपनी पत्नी को ढूंढते हुए मंदिर पहुंचे, वह देखते हैं कि उनकी पत्नी उन्हें देख कर खुश हो रही होती है और कहती है कि भगवान ने मेरी सुन ली कि तुम आज यहां आए हो। वह ठाकुर जी का हाथ थाम कर बांके बिहारी के सामने ले जाती है। 🍂
🍂बांके बिहारी ने पहन रखी थी वही पोषाक
ठाकुर जी जैसे ही मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। वह देखते हैं कि बांके बिहारी ने वही पोषाक पहन रखी थी जिसे उन्होंने चोरी करवाई थी। इसे देख ठाकुर हैरान परेशान हो गया और जब उसने बांके बिहारी से आंखें मिलाई तब उसकी नजरें खुद शर्म से झुक गईं। उनकी पत्नी ने बताया कि इस पोषाक बीती रात उनके बेटे ने लाई थी। यह सुन कर ठाकुर का दिमाग खराब हो गया और यह सोचते सोचते उसकी आंख लग गई। 🍂
🍂बांके बिहारी सपने में आए थे और ठाकुर से कहते हैं कि क्यों हैरान हो गए कि पोषाक मुझ तक कैसे पहुंची। वे बोले कि इस दुनिया में जिसे मुझ तक आना है उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। पोषाक तो क्या तू खुद को देख, तू भी वृंदावन आ गया। यह बात सुन ठाकुर साहब की नींद खुल जाती है और उनका दिमाग सुन्न पड़ जाता है। 🍂

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें