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गुरुवार, 4 मई 2017

इन कारणों से साधु-संत पहनते हैं लकड़ी की चप्पल


इन कारणों से साधु-संत पहनते हैं लकड़ी की चप्पल

पहले के समय में साधु-संत खड़ाऊ पहना करते थे और केवल साधु-संत ही नहीं कई लोग इसका इस्तेमाल करते थे। आज के समय में तो खड़ाऊ की जगह तरह-तरह की चप्पलों ने ले ली है। अब तो शायद ही कोई इसका इस्तेमाल करता होगा, लेकिन अभी भी कई साधु-संत ऐसे हैं जो चप्पल पहनने के बजाय खड़ाऊ पहनना ही बेहतर समझते हैं। उनके खड़ाऊ पहनने के पीछे भी एक कारण है।

चलिए आपको बताते हैं कि साधु-संत लकड़ी कीचप्पल क्यों पहनते हैं।

इसके पीछे है वैज्ञानिक कारण

पुरातन समय में साधु-संत पैरों में लकड़ी के खड़ाऊ पहनते थे। उनके खड़ाऊ पहनने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण था।

गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में दिया था, उसे ऋषि-मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था।

यह था सिद्धांत

उस सिद्धांत के अनुसार, शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे, गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी के द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। अगर यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहे तो शरीर की सारी जैविक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं।

इसलिए शुरु की खड़ाऊ पहनने की प्रथा

इन्हीं जैविक शक्तियों के बचाने के लिए साधु-संतों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा शुरु की।

इसके पीछे धार्मिक कारण भी है

पुरातन समय में चमड़े का जूता पहनना, कई धार्मिक कारणों से मान्य नही था। इसलिए खड़ाऊ का ही इस्तेमाल करना पड़ता था।

बाद में इसका अधिक प्रचलन हुआ

लकड़ी के खड़ाऊ पहनने से किसी भी धार्मिक या सामाजिक लोगों को कोई आपत्ति नहीं थी, इसलिए इसका अधिक प्रचलन था।

यही खड़ाऊ बाद में जाकर साधु-संत की पहचान बन गए।

सौजन्य से - दैनिक भास्कर

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