सफल होने के लिए इन चार स्थानों का करें त्याग- चाणक्य
9 Jun. 2017
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आचार्य चाणक्य ने राजनीति, धर्म और मानव विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर आत्मचिंतन और अध्ययन कर बताया है कि यदि मनुष्य को दुख, दर्द, क्लेश, पीड़ा, आतना, निर्धनता आदि को छोड़कर सुख, समृद्धि और आनंद की अनुभूति कर जीवन में आगे बढ़ना है तो जिस स्थान पर ये चार चीजें ना हो वहाँ एक दिन भी नहीं रहना चाहिए ऐसे स्थान को तुरंत त्याग देना चाहिए।
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1. जिस स्थान पर व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार सम्मान न मिले, गुणों के आधार पर आदर सत्कार न मिले हमेशा अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़े उस स्थान को समय रहते ही तुरंत छोड़ देना चाहिए। ऐसे स्थान पर निर्लज्ज की तरह नहीं रहना चाहिए।
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2. जिस स्थान पर व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुरूप रोजगार न मिले, ईमानदारी से धन कमाने का कोई साधन न हो, हमेशा दरिद्र ही रहना पडे वहाँ भी भले व्यक्ति को नहीं रहना चाहिए। ऐसे स्थान को भी छोड़ देना ही अच्छा है।
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3. जिस स्थान पर अपने बंधु बांधव, सगे संबंधी रिश्तेदार न रहते हो वहाँ भी बुद्धिमान व्यक्ति को नहीं रहना चाहिए। सुख और दुख को बांटने के लिए सगे-संबंधियों की नितांत आवश्यकता होती है। मनुष्य समाज प्रिय प्राणी होने के कारण अकेला नहीं रह सकता। स्वस्थ और समृद्ध रहने के लिए रिश्तेदारों से मेल मिलाप जरूरी होता है। विपत्ति में कोई न कोई शुभ चिंतक मदत कर सकता है।
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4. जिस स्थान पर विद्या प्राप्ति का कोई भी साधन न हो, ज्ञानार्जन की कोई भी व्यवस्था न हो उस स्थान को भी तुरंत छोड़ देना चाहिए। ज्ञान के अभाव में व्यक्ति का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। बिना ज्ञान के आगे नहीं बढ़ सकता। अतः ज्ञानार्जन की व्यवस्था से रहित स्थान को छोड़ने में ही बुद्धिमानी है।
यह लेख पत्रकारिता सामग्री नहीं है। इसे वीमीडिया लेखक द्वारा कॉपीराइट किया गया है और किसी भी तरह से यह UC News के विचारों को नहीं दर्शाता है।
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हे प्रभो! सभी सुखी रहे। सभी निरोगी रहे। सभी भद्र ही देखे। कोई भी दुखी ना रहे।
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