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सोमवार, 12 जून 2017

क्या चाहते हैं भारतीय किसान और क्यों है उनकी यह हालत?





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क्या चाहते हैं भारतीय किसान और क्यों है उनकी यह हालत?

Updated Jun 18, 2017, 10:08 AM IST
सौम्या अजी
'मां बच्चे को दूध तब ही पिलाती है जब बच्चा रोता है। अभी बच्चा काफी तेज रो रहा है।' भारत में खेती के हाल को एमपी किसान आंदोलन के मुखिया माने गए शिव कुमार शर्मा कुछ ऐसे ही बयां करते हैं। कक्का के नाम से मशहूर शर्मा राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष भी हैं। किसानों की दशा को लेकर वह कहते हैं, 'हम सभी जानते हैं कि किसान क्यों दुखी है। किसान निराशा की हदें पार कर चुका है और अब हमारे पास दो ही विकल्प हैं-आंदोलन या आत्महत्या।'
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यह विचार केवल कक्काजी के नहीं बल्कि सभी किसान नेताओं के हैं। दिल्ली के जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों ने 41 दिनों तक प्रदर्शन किया। किसानों ने सरकार का ध्यान खींचने के लिए पेशाब पीने जैसे प्रतीकों का भी सहारा लिया। महाराष्ट्र में किसानों ने सब्जियों और दूध की सप्लाइ बंद कर दी और आखिर में सीएम देवेंद्र फडणवीस को यूपी की योगी सरकार की तरह ही लोन माफी का वादा करना पड़ा। 

RSS से जुड़े भारतीय किसान संघ के सचिव मोहिनी मोहन मिश्रा का मानना है कि लोन माफी इस समस्या का समाधन नहीं है। वह कहते हैं, 'सभी किसान कर्जमाफी की मांग नहीं कर रहे, कुछ कर रहे हैं। यूपीए की सरकार ने भी कर्जमाफी की थी और वीपी सिंह की सरकार ने भी कर्ज माफ किया था। असली किसान जानते हैं कि यह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है। एक ऐसी लॉलीपॉप जो उन्हें कर्जे से मुक्ति नहीं दिला पाएगी।'
मिश्रा का कहना है कि कर्जमाफी पाने वाले 15 से 20 प्रतिशत लाभार्थी झूठे किसान होते हैं। 25 से 30 प्रतिशत किसानों को कर्जमाफी का फायदा नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा, 'हमें कर्जमाफी की जरूरत नहीं है बल्कि खेती में लगने वाले पैसे को कम करने और बदले में फसल का अच्छा दाम मिलने की जरूरत है।'

रोडमैप की जरूरत
मोहन मिश्रा के पास इस समस्या के निवारण के लिए बहुआयामी प्लान है जिसे वह चाहते हैं कि पीएम मोदी लागू कर दें। 
1) फसल खड़ी करने में जरूरी सभी चीजों जैसे उर्वरक, बीज, कृषि यंत्रों पर सब्सिडी। यह सब्सिडी सीधे किसान के खाते में जाए कंपनियों को नहीं।
2) खेत से थाली तक अनाज लंबा रास्ता तय करता है। जिस रेट में किसान फसल बेचता है और जिस रेट पर उपभोक्ता फसल खरीदता है उसमें काफी अंतर होता है। बिचौलिए द्वारा लगाए जाने वाले चार्ज पर लिमिट लगा कर अंतर को कम किया जा सकता है।

3) किसानों को ब्याज मुक्त लोन मिले, जैसा एमपी और कर्नाटक में होता है और उस पर ब्याज केवल तभी लगाया जाए जब वह फसल बेचने के बावजूद लोन वापस न करें। 

4) स्थानीय किसानों को बजट और प्लानिंग से जुड़ी चर्चाओं में शामिल किया जाए। 

5) देश के कुल 70 कृषि विश्वविद्यालयों में कम से कम 15 को ऑगर्निक विश्वविद्यालय में बदल दिया जाए। जिससे लागत को कम करने और फसल को बढ़ाने की दिशा में नए प्रयोग किए जा सके।

6) किसानों का शोषण करने वाले चीनी मिलों टमाटर कारोबारियों के लिए कड़े कानून लाए जाएं और सुनिश्चित हो कि किसान को अपनी फसल का दाम समय से मिले। 
बेंगलुरु के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ अडवांसड स्टडीज में पढ़ाने वाले सोशल साइंटिस्ट नरेंद्र पानी का मानना है कि इस साल समस्या सूखे से जुड़ी नहीं है। उन्होंने कहा, 'इस साल हम जो समस्याओं का सामना कर रहे हैं वह कृषि उत्पादों के अधिक उत्पादन की वजह से है जिससे दरें गिर गई हैं।'

किसान संगठनों की मांग है कि कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन और किसानों के राष्ट्रीय आयोग के 'डिस्ट्रेस फॉर्म्यूला' को लागू किया जाए। इसके अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) फसल की लागत में 50 प्रतिशत जोड़ कर हो। कक्काजी का मानना है कि इससे स्थिति और बिगड़ जाएगी क्योंकि इससे फसल का दाम अंतरराष्ट्रीय रेट से भी ज्यादा हो जाएगा जिससे एक्सपोर्ट मार्केट पर असर पडे़गा।

सोशल साइंटिस्ट नरेंद्र पनी का कहना है कि एमएसपी बढ़ा कर या लोन माफी का सीमित असर होगा और असल समस्या का समाधान नहीं होगा। वह कहते हैं, 'अगर सभी राज्य लोन माफी का तरीका अपनाते हैं तो उससे 2,70,000 करोड़ का बोझ पड़ेगा जिससे अन्य क्षेत्रों में निवेश कम हो जाएगा। लोन माफी में इस आधार पर भी भेदभाव होता है कि क्या किसान लोन वापस देने लायक है या नहीं।'
टेक लाइफ छोड़ किसान बने एससी मधुचंदन का कहना है कि 40 साल पहले किसानों के परिवार गरीब नहीं थे। वह अपने खाने वाली हर चीज उगाते थे और बचा हुआ घर पर रखते थे। अभी भी पुराने तरीकों से खेती करने वाले किसान भारी कर्जे से बचे हुए हैं। वह अपने पूर्वजों द्वारा अपनाए गए खेती के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। मधुचंदन का कहना है कि कृषि से अभी भी लगभग पहले जैसा रिटर्न ही मिल रहा है लेकिन अब किसानों के खर्चे पहले जैसे नहीं रहे हैं। 

नोटबंदी का असर?
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि किसान जिस क्राइसिस से गुजर रहे हैं उसके लिए नोटबंदी जिम्मेदार है। पनी का मानना है कि नोटबंदी से अभी इकॉनमी बाहर नहीं आ पाई है। मिश्रा का मानना है कि किसानों को नोटबंदी से असर नहीं पड़ा लेकिन बैंक, एटीएम जैसे इन्फ्रा की कमी से गांवों में समस्या और जटिल हो गई। 

टॉप कॉमेंट

Chetan Aawaz
Aakashwani3 hours ago

वोट की राजनीति के चलते मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली के बाँटने की गलत नीति के चलते अब किसानों की नई आलसी पीढी में बिना कुछ किये सब कुछ पाने की लालसा पैदा हो गई है

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Web Title: what indian farmers really need: a total overhaul of fundamental economics of agriculture
(Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)
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3 टिप्‍पणियां:

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